फिर उन्होंने प्रेम से विभोर होकर पार्वती जी का मुखमंडल स्पर्श करते हुए कहा- "प्रिये! तुम्हारी कृपा से मेरी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो चुकी है, कुछ भी शेष नहीं रहा. फिर भी मेरी एक इच्छा है, तुम उसे पूर्ण कर दो." तब पार्वती ने कहा- "शंभो! आपकी कौन-सी इच्छा है, बताइये मैं अवश्य उसे पूर्ण करूंगी."
तब शिवजी ने अपनी इच्छा बताते हुए कहा- "देवि! मेरी इच्छा है कि तुम मृत्युलोक में पुरुष रूप में अवतीर्ण होओ. मैं भी स्त्री रूप में अवतीर्ण होऊंगा. इस समय जिस प्रकार में तुम्हारा पति हूं तथा तुम मेरी प्राणप्रिया पत्नी हो| उसी प्रकार का दाम्पत्य-प्रेम उस समय भी हो. यही मेरी इच्छा है. तुम इसे पूर्ण करो.”
भगवान शिव की बात सुन कर भगवती पार्वती मुस्करा उठीं. उन्होंने शिव को आश्वासन देते हुए कहा “प्रभो! आपकी इच्छा को पूर्ण करने के लिए मैं अवश्य मृत्युलोक में पुरुष रूप में अवतीर्ण होऊंगी. आपकी प्रसन्नता के लिए मैं पृथ्वी पर वसुदेव के घर में पुरुष रूप में श्रीकृष्ण होकर जन्म लूंगी. लेकिन महादेव! आपको भी मेरी प्रसन्नता का ध्यान रखना होगा."
भगवान शिव उत्सुकतापूर्वक बोले- “देवी, शीघ्र कहो. मैं तुम्हारी प्रसन्नता के लिए क्या करूं?” “आपको भी स्त्री रूप में अवतीर्ण लेना होगा." पार्वती ने भी अपनी इच्छा बताई.
भगवान शिव ने अत्यंत प्रसन्न होकर कहा- "शिवे! तुम्हारे पुरुष रूप से श्रीकृष्ण के रूप में अवतीर्ण होने पर मैं स्वयं तुम्हारी प्राण सदृश वृषभानु की पुत्री राधा के रूप में प्रकट होकर तुम्हारे साथ विहार करूंगा. इसके साथ साथ मेरी आठ मूर्तियां भी रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती आदि पटरानियों के रूप में मृत्युलोक में अवतरित होंगी."
यह सुन कर भगवती पार्वती ने शिव से कहा- "प्रभो! तब आपकी मूर्तियों के साथ मैं ऐसा यथोचित विहार करूंगी जैसा न तो किसी ने किया है और न ही कही सुना गया है, विजया और जया नामक मेरी दोनों सखियां उस समय श्रीदाम एवं वसुदाम नाम से पुरुष रूप में प्रतिष्ठित होंगी.
पूर्व काल में विष्णु जी के साथ मेरी प्रतिज्ञा हुई है, जिसके अनुसार वे उस समय, जब मैं श्रीकृष्ण होऊंगी, वे मेरे बड़े भाई होंगे. वे महान बलशाली तथा आयुध धारण करने वाले बलराम के नाम से प्रसिद्ध होंगे. इस प्रकार में पृथ्वी पर अवतरित होऊंगी और देवताओं के कार्य संपन्न करूंगी तथा अंत में महान कीर्ति स्थापित करके पृथ्वी से वापस चली आऊंगी."
पूर्वकाल में भगवती और विष्णु जी ने युद्ध में जिन राक्षसों को संहार किया था वे द्वापर के अंत में बहुत से राजाओं के रूप में उत्पन्न हो गये. उनके भार को न सह सकने के कारण पृथ्वी गोरूप धारण कर समस्त देवताओं के साथ ब्रह्माजी के पास गईं और बोलीं- "ब्रह्मन्! पूर्वकाल में जो-जो महान राक्षस युद्ध में मारे गये थे, वे ही इस समय दुष्ट चित्त वाले राजा बने हुए है. उनका भार वहन करने में असमर्थ होकर में आपके पास आयी हूं. उनकी मृत्यु का कोई उपाय कीजिए.”
तब पृथ्वी को लेकर ब्रह्मा जी कैलाश पर पहुंचे, वहां उन्होंने भगवती को प्रणाम कर कहा- "माते! आपने और विष्णु जी ने जिन-जिन दैत्यों, दानवों और राक्षसों का संहार किया था वे सब इस समय बड़े-बड़े क्षत्रिय राजा हो गये हैं.. उन दुराचारी राजाओं का भार पृथ्वी सहन नहीं कर पा रही हैं. अतः, आप उनका वध कीजिये.
तब भगवती ने कहा- "ब्रह्मन्! मैं स्त्री स्वरूप में उन राजाओं का वध नहीं कर सकती, क्योंकि उन्होंने भक्तिपूर्वक मेरे स्त्री स्वरूप का ही आश्रय ग्रहण किया है. लेकिन हां, मेरी जो भद्रकाली मूर्ति है वह वसुदेव के घर में पुरुष रूप से जन्म लेगी, वसुदेव-पत्नी देवकी के गर्भ से अवतार लेंगे. वे कंस आदि दुष्ट राजाओं का संहार करेंगे.
भगवान विष्णु भी अपने अंश से उत्पन्न होकर महाबली अर्जुन के रूप में प्रसिद्ध होंगे, धर्मराज युधिष्ठिर होंगे, पवन देव भीमसेन तथा अश्विनीकुमारों के अंश से नकुल और सहदेव उत्पन्न होंगे. ये सब धर्मपरायण होंगे. दुष्ट दुर्योधनादि का पांडवों से युद्ध होगा. मैं युद्ध में माया फैला कर रणभूमि में उपस्थित होकर परस्पर मारने की इच्छा वाले उन दुष्ट राजाओं का संहार कर दूंगी.
मेरी भक्ति में लीन रहने वाले पुण्यात्मा तथा धर्मनिष्ठ पांडु पुत्र पांचों भाई बच जायेंगे. इस प्रकार मैं सभी पापी राजाओं का संहार कर डालूंगी. पृथ्वी को भार मुक्त कर पुनः यहां चली आऊंगी.
हे जगत्पते! मैं लोक कल्याण के लिए इस प्रकार का कार्य करूंगी. आप विष्णु जी के पास जाकर उनसे प्रार्थना कीजिए कि वे मानव देह धारण कर पांडु पत्नी के गर्भ से शीघ्र पृथ्वी पर अवतरित हो."
भगवती के इस प्रकार कहने पर ब्रह्माजी भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे और उनसे पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए प्रार्थना की. तब भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं इंद्रदेव के द्वारा कुंती के गर्भ से मानव रूप धारण कर अवतीर्ण होऊंगा.
इस प्रकार, ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर साक्षात् भगवती | देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए अपने अंश से वासुदेव पुत्र श्री कृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुईं और भगवान विष्णु ने भी महान बल पराक्रम वाले श्री बलराम तथा पांडु के दूसरे पुत्र अर्जुन- इन दो रूपों में जन्म लिया.
भगवान शिव भी पीछे नहीं रहे. वे भी वृषभानु गोप के घर में अपनी लीला से स्त्री रूप में जन्म लिया और राधा नाम से विख्यात हुए. राधा प्रतिदिन कृष्ण के पास जाकर प्रेमपूर्वक उन्हें अपनी गोद में बिठा कर अत्यंत आदर से उन्हें देखा करतीं.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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