 Published By:दिनेश मालवीय
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कब नहीं सोना चाहिए-सहवास नहीं करना चाहिए- किसे जगाना और नहीं जगाना चाहिए -कैसा करने पर सात जन्म तकरोगी और दरिद्र रहेंगे -दिनेश मालवीय
हमारे शास्त्रों में सोने और जागने के के सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण नियम बताये गये हैं. इनके पीछे बहुत गहरे कारण हैं. इस सम्बन्ध में जो नियम और सावधानियां बतायी गयी हैं, उनमें से एक बहुत महत्वपूर्ण यह है कि दिन में नहीं सोना चाहिए.साथ ही रात के पहले और अंतिम प्रहार में भी नहीं सोना चाहिए. रात में देर तक जागने की भी मनाही की गयी है.
शास्त्रों के अनुसार रात के पहले और अंतिम प्रहर को छोड़कर दूसरे और तीसरे प्रहार में सोना ही उत्तम है. दिन में तथा सूर्योदय के बाद सोने से आयु कम होती है.दिन में या दोनों संध्याओं के समय सोने या सहवास करने को तो इतना बुरा माना गया है कि या कहा गया कि ऐसा करने वाला व्यक्ति सात जन्मों तक रोगी और दरिद्र होता है. कोई व्यक्ति बीमार हो, यह अलग बात है, लेकिन स्वस्थ होते हुए दिन में या सुबह देर तक सोना किसी पाप की तरहहै.भविष्यपुराण के अनुसार जिस मनुष्य के सोते हुए ही सूर्योदय या सूर्यास्त हो जाए वह महान पाप का भागी होता है.
ब्रह्ममुहूर्त और गोधूलीवेलाया शाम के समय, जब दिन और रात मिलते हैं, उस वक्त सोनाऔर सहवास करना करना वर्जित है. इस समय संक्रमण होने की बहुत संभावना होती है. संध्याकाल में सहवास करना सिर्फ पति और पत्नी के लिए बल्कि उससे होने वाली संतान के लिए भी उत्तम नहीं होता. बच्चा मन, बुद्धि, संस्कार और सेहत की दृष्टि से कमजोर होगा. पुराणों में अनेक ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिनमें संध्याकाल में किये गये सहवास से गर्भाधान के परिणामस्वरूप दैत्यों और असुरों का जन्म हुआ.
सुबह ब्रह्ममुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए. इसबातका समर्थन सभी धर्म और चिकित्सा ग्रंथों में किया गया है. देवी भागवत, मनुस्मृति, व्यास स्मृति, लघु व्यास संहिता,विष्णुपुराण तथा साष्टांग हृदय आदि ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है. सिर्फ बीमार मनुष्य को इस नियम से छूट है.
शास्त्रों में कुछ व्यक्तियों कोसोते हुए व्यक्ति को नींद से जगाने को कहा गया है, तो कुछ को नहीं जगाने की सलाह दी गयी है. विद्यार्थी, सेवक, यात्री, भूख से पीड़ित, द्वारपाल,भयभीत व्यक्ति और भंडारी यदि सोते हुए मिलें तो उन्हें जगा देना चाहिए.लेकिन सोते हुए सांप, शेर, राजा, अधिकारी,, बच्चे और दुर्जन व्यक्ति को नहीं जगाना चाहिए. सोते हुए योगी, साधक को भी जगा देना चाहिए.
इसस भी विधि-निषेधों के पीछे गहरे कारण हैं. सोया हुआ व्यक्ति कब सोया है, कितना थका हुआ है, सेहतमंद है या नहीं, उसका मिज़ाज कैसा है आदि बातों का ज्ञान हमें नहीं होता. इसलिए किसी सोये हुए व्यक्ति को जगाना उचित नहीं है. वैसे भी किसी केआराम, साधना. तपस्या, पूजा और भोजन में खलल डालना किसी भले व्यक्ति के लिए उचित नहीं है.सांप, शेर, हिंसक पशु, राजा आदि को जगाना संकट को निमंत्रण जैसा है. वेक्ज्पित होकर आपकी जान तक ले सकते हैं. सोते होए हुए बच्चे को कच्ची नींद में जगाने को मन किया गया है. ऐसा करने पर वह रो-रो कर आसमान सिर पर उठा लेगा.
विद्यार्थियों के लिए शास्त्रों में एक बहुत बहुमूल्य बात कही गयी है. कहा गया है कि ' विद्यार्थी को सुख कहाँ?' परिश्रम ही उसकी सफलता का आधार है. उसे उतना ही सोना चाहिए जितना सेहत के लिए आवश्यक है. अधिक सोने वाले विद्यार्थी को जगा देनाचाहिए, ताकि वह अध्ययन कर सके.
वैसे तो ये सभी बातें बहुत सामान्य लग सकती हैं, लेकिन स्वस्थऔर सुखी जीवन के लिए इनका बहुत महत्त्व है. इनमें से कुछ नियम बहुतप्राचीन समय में बनाए गये थे और हो सकता है, आज उनकी उतनी प्रासंगिकता नहीं रह गयी हो, लेकिन इनमें से अधिकतर नियम हर समय प्रासंगिक हैं.
यात्री को जगा देने वाली बात को लें. पुराने समय में यात्री अधिकतर पैदल यात्रा करते थे. थककर किसी पेड़ के नीचे सो जाया करते थे. शाम हो जाने का उन्हें पता नहीं चलता था. इसी स्थिति में अंधेरा होने से पहले उनका अपने गंतव्य तक पहुंचना नहीं हो पाता था. रात होने पर जंगली जानवरों, चोरों और लुटेरों का खतरा भी हो जाता था. ऐसी स्थिति में उन्हें जगाना उचित होता था. लेकिन अब ऐसी स्थति अधिकतर नहीं रह गयी है.
बहरहाल, इन नियमों का पालन एक स्वस्थ और सुखी जीवन में सहायक हो सकता है.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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