Published By:धर्म पुराण डेस्क

जब देहाध्यास हट जाता है, तब ममता भी हट जाती है

आज तक अगले कई जन्मों में तुम्हारे कई पिता रहे होंगे, माताएँ रही होंगी, कई नाते-रिश्ते वाले रहे होंगे। उसके पहले भी कोई रहे होंगे और उसके पहले भी कोई रहे होंगे। तुम्हारा लगाव देह के साथ जितना प्रगाढ़ होगा उतना ये नाते-रिश्तों का बोझ तुम्हारे पर बना रहेगा। देह का लगाव जितना कम होगा उतना बोझ हलका होगा। 

भीतर से देह की अहंता टूटी तो बाहर की ममता तुम्हें फँसाने में समर्थ नहीं हो सकती। भीतर से देह की आसक्ति टूट गयी तो बाहर की ममता तुम्हारे लिए खेल बन जाएगी। तुम्हारे जीवन से फिर जीवन्मुक्ति के गीत निकलेंगे। 

जीवन्मुक्त पुरुष सब में होते हुए, सब करते हुए भी सुखपूर्वक जीते हैं, सुखपूर्वक खाते-पीते हैं, सुखपूर्वक आते-जाते हैं, सुखपूर्वक स्वस्वरूप में समाते हैं। केवल ममता हटानी है। देहाध्यास हट गया तो ममता भी हट गई। देह की अहंता को हटाने के लिए आज शमशान यात्रा कर लो। जीते-जी मर लो जरा-सा। डरना मत। 

अपने कई जन्मों में हमारे कई पिता, माता, नातेदार और रिश्तेदार रहे होंगे। हमारे ऊपर नाते और रिश्तों का बोझ तब बना रहता है जब हम अपने शरीर के साथ गहरा संबंध बनाते हैं। जब यह लगाव कम होता है, तो ये नाते और रिश्ते हमारे ऊपर हल्के पड़ते हैं। जब हमारी देह की आसक्ति तोड़ दी जाती है, तब बाहरी ममता हमें फंसाने में समर्थ नहीं होती। जब हमारे अंतर में देह की आसक्ति टूटती है, तब बाहरी ममता हमारे लिए खेल बन जाती है। तब हमारा जीवन जीवन्मुक्ति के गीत के रूप में निकलने लगता है।

जीवन्मुक्त पुरुष इस सत्य को जीते हुए दिखाते हैं कि वे सुखपूर्वक जीते हैं, सुखपूर्वक खाते-पीते हैं, सुखपूर्वक आते-जाते हैं और सुखपूर्वक अपने स्वरूप में समाते हैं। इसलिए, हमें केवल ममता को हटाना होगा। जब देहाध्यास हट जाता है, तब ममता भी हट जाती है। देह की अहंकार को हटाने के लिए, आज ही श्मशान की यात्रा करें। हमेशा जीते हुए मर लें, एक सूक्ष्मतर अवस्था में। डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।

धर्म जगत

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