 Published By:दिनेश मालवीय
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इंसान का स्वाभाव और चित्त इस तरह का होता है, कि वह कभी भी अच्छी या बुरी चीज को तत्काल ग्रहण कर लेता है. बुरे से बुरा व्यक्ति भी साधु हो जाता है और परम साधु कोटि का व्यक्ति भी पापी हो जाता है. स्वभावव से ही मनुष्य का चित्त बुरी चीज को जल्दी ग्रहण करता है. पाप की ओर जल्दी प्रवृत्त हो जाता है. लेकिन किसी भी पाप से उभरने के उपाय भी मौजूद हैं. अपनी भूल को हम कभी भी सुधार सकते हैं. अंग्रेजी में भी एक कहावत है कि It is never too late to mend. हमारे पुराने शास्त्रों में इसके सम्बन्ध में एक बहुत प्रीतिकर कथा आती है.
प्राचीन काल में कन्नौज नगर में अजामिल नाम का एक ब्राह्मण रहता था. वह एक बहुत संस्कारित परिवार में जन्मा था. लेकिन बुरे लोगों के साथ रहने के कारण उसका सदाचार नष्ट हो गया. वह अनेक प्रकार के पाप करके जीवन-यापन करने लगा. पहले वह एक विद्वान, सदाचारी और पवित्र व्यक्ति था. एक दिन वह समिधा लेने लिए वन में गया. समिधा लेकर जब वह लौट रहा था, तो उसने एक निकृष्ट व्यक्ति को एक वैश्या के साथ काम-क्रीड़ा करते देखा. इस दृश्य को देखकर उसमें कामासक्ति हो गयी. वह कामांध हो गया. उसने ख़ुद को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे नाकामी हाथ लगी. वह दृश्य उसके मन-मस्तिष्क में बैठ गया. वह उस वैश्या को समझा-फुसलाकर अपने घर ले आया और अपनी पत्नी को बाहर निकल दिया. अजामिल उसके साथ सदा पाप कर्म में संलग्न रहने लगा.
यह एक तथ्य है, कि पाप आँख के जरिये ही मन में आता है. आँखों में विकार आते ही मन भ्रष्ट हो जाता है. मन के भ्रष्ट होने पर व्यक्ति मन के हाथों परवश हो जाता है. इसीलिए हमारे पूर्वजों ने बुरे दृश्य देखने से बचने का उपदेश दिया है. हमारा मन एक कंप्यूटर चिप की तरह है, जिसमें हमारे द्वारा देखी जाने वाली हर चीज अंकित हो जाती है.
परिवार के भरण-पोषण के लिए अजामिल लूट-पाट भी करने लगा. वह हत्या करने से भी नहीं चूकता था. उसका जीवन घोर पाप से भर गया. इसी बीच एक दिन मौत ने उसे आ दबोचा. यमदूत उसे लेने आ गये. उनके विकराल और डरावने रूपों को देखकर अजामिल डर गया. यमदूत अजामिल के शरीर से सूक्ष्म शरीर को खींचकर अलग करने लगे. इससे उसे भारी कष्ट होने लगा. वैश्या से उसका छोटा पुत्र था, जिसका नाम नारायण था. अजामिल उसे बहुत प्यार करता था. डरे, सहमें अजामिल ने ‘नारायण नारायण’ कहकर आवाज दी. इस शब्द के उच्चारण से विष्णुदूत वहाँ आ पहुंचे. उन्होंने यमदूतों को अजामिल को ले जाने से रोक दिया. यमदूतों और विष्णुदूतों के बीच संवाद का भागवत ने बहुत सुंदर वर्णन किया गया है.
इस संवाद को सुनकर अजामिल में पूर्व पुण्य कर्मों के फलस्वरूप दिव्य भाव जाग्रत हो गया. उसके जीवन की दिशा बदल गयी. उसे अपने पाप कर्मों पर पश्चाताप हुआ. उसमें वैराग्य भाव जाग उठा. वह हरिद्वार आकर गंगातट पर भगवान की भक्ति में लीं हो गया. साधना के दौरान ही वह शरीर त्याग कर वैकुण्ठ चला गया. इस कथा से प्रेरणा मिलती है कि हमें बुरा सुनने, बुरा देखने और बुरा बोलने के साथ ही बुरे लोगों के साथ से बचना चाहिए. यदि संयोग से ऐसा होकर हम कुछ गलत कर भी बैठें तो उसके प्रयाश्चित के उपाय हैं.
 
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