 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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ईश्वर को खोजने के लिए, प्रयत्न करते हैं, पर उसे नहीं पाते। कहते हैं कि वह सर्वत्र है, वह सब जगह है, पर फिर भी हमें क्यों नहीं दिखता? उसे प्राप्त करने को धन, वैभव, जीवन तक नष्ट करते हैं, पर पाते नहीं। अंत में निराश होकर कहते हैं कि ईश्वर नहीं है।
भाई! ईश्वर है, पर उसे खोजने में गलती कर रहे हो। तुम उसे धन-वैभव से नहीं पा सकते। अगर उसे पाना है, तो प्रेम करना सीखो। प्राणिमात्र से प्रेम करो, जड़-चेतन से प्रेम करो, आत्मा से प्रेम करो। उसे पाने के लिए जंगल में जाने की, धूनी रमाने की, धन-वैभव नष्ट करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
जब वह सर्वत्र है, तो आपके पास भी होगा। कहां? आप के शरीर में, जिसे आप आत्मा कहते हैं। क्या आपने कभी अपनी आत्मा की आवाज पर ध्यान दिया है? नहीं। यही कारण है कि आप उसे खोजने पर भी नहीं पाते। विचार करो, जब तुम बोलते हो, चलते हो, काम करते हो, सोचते हो या शुभ काम करने की प्रेरणा होती है, तो वह कहां से और कौन देता या कहता है?
जब तुम किसी को कष्ट पहुंचाने का विचार करते हो और तुम्हें अंदर से कोई रोकता है कि ऐसा न करो, वह कौन है? वह अपने अंदर मौजूद ईश्वर ही है। उसे अपने अंदर ही महसूस किया जा सकता है।
हिंदू धर्म में, ईश्वर को सर्वोच्च आदर्श और परम तत्व माना जाता है। ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, निराकार और सच्चिदानंद स्वरूप हैं। हिंदू धर्म में ईश्वर को अनंत, अविकारी, अचल, अमृत और नित्य माना जाता है।
ईश्वर की उपस्थिति या स्थान की दृष्टि से, हिंदू धर्म में ईश्वर सभी जगह व्याप्त हैं। वह सभी प्राणियों, सबसे छोटे अणु से लेकर ब्रह्मांड के सबसे बड़े तत्व तक मौजूद हैं। हिंदू धर्म में ईश्वर का स्वरूप अद्वैतीय (निर्द्वन्द्व) हैं, जिसका अर्थ है कि वह सभी वस्तुओं से अलग और सर्वव्यापी हैं। वह सभी जीवों के आदि तथा अन्त हैं और सम्पूर्ण ब्रह्मांड में स्थित हैं।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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