हिन्दू परिवारों में कुछ साल पहले तक एक केलेन्डर अमूमन रहता था, जिसमें पाप करने वाले लोगों को मौत के बाद मिलने वाली सजा को दर्शाय जाता था. इस कैलन्डर ने सदियों तक लोगों को पाप कर्म करने से बचने में बहुत मदद की. आजकल यह बहुत दुर्लभ रूप से किसी घर में नज़र आता है. व्यक्ति बचपन से ही इस कैलंडर को देखते हुए इस तरह बड़ा होता था, कि उसमें पाप कर्मों से बचने का संस्कार बहुत दृढ़ होता था. सनातन धर्म के अनुसार जीव अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में विचरता रहता है, जिनकी संख्या 84 लाख है. आइये, इस सम्बन्ध में शास्त्र क्या कहते हैं, इसे जानते हैं
मनुष्य के मन में यह जिज्ञासा सदा से रही है, कि मरने के बाद क्या होता है? भारतीय धर्मों में कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म की अवधारणा है. यह भी बताया गया है, कि किस कर्म को करने से मनुष्य को अगले जन्म में कौन-सी योनि मिलती है. ब्रह्मपुराण में पुण्यात्मा मुनियों और वेदव्यास के बीच एक संवाद आता है, जिसमें व्यासजी ने अन्य विषयों के साथ इस विषय पर भी प्रकाश डाला है.
मुनियों के साथ संवाद में व्यासजी ने बताया, कि परायी स्त्री के साथ सहवास करने से मनुष्य पहले तो भेड़िया बनता है, फिर क्रमश: कुत्ता, सियार, गीध, सांप,कौवा, और बगुले के रूप में जन्म लेता है. मित्र, गुरु और राजा की पत्नी के साथ समागम करने वाला व्यक्ति मरने के बाद सूअर के रूप में जन्म लेता है. इसके बाद दस वर्ष तक बगुला, तीन वर्ष तक सूअर रहकर मरने के बाद दस वर्ष तक बगुला, तीन महीने तक चींटी और एक माह तक कीट की योनि में पड़ा रहता है. इन सब योनियों में जन्म लेने के बाद वे पुन: कृमि योनि में पैदा होता है. चौदह महीने तक इसी योनि में जीवित रहता है. इस प्रकार अपने पाप कर्मों का क्षय करके फिर मनुष्य योनि में जन्म लेता है.
व्यासजी ने बताया, कि अपनी कन्या का विवाह किसी के साथ तय करके फिर किसी दूसरे के साथ विवाह करने वाला मरने के बाद कीड़े की योनि में जन्म पात है. इस योनि में तेरह वर्ष तक जीवित रहकर फिर पाप समाप्त होने पर वह फिर मनुष्य बनता है. जो व्यक्ति देवकार्य या पितृकार्य न करके देवताओं और पितरों को संतुष्ट किया बिना मर जाता ही, वह कौवा बनता है. सौ साल तक कौवे की योनि में रहकर वह मुर्गा बनता है. इसके बाद एक माह तक सर्प की योनि में रहता है और उसके बाण मनुष्य बनता है.
जो व्यक्ति पिता के समान बड़े भाई का अपमान करता है, वह मरने के बाद क्रोंच योनि धारण करता है और दस वर्ष उसमें रह कर फिर सूअर बनता है. सूअर योनि में जन्म लेते ही रोग से उनकी मौत होती है. वह पहले के पापों के कारण ही कुत्ते की योनि में उत्पन्न होता है. उसके बाद उसे मानव शरीर प्राप्त होता है. मानव योनि में संतान उत्पन्न करके वह मर जाता है. फिर चूहे का जन्म पाता है.
कृतघ्न मनुष्य मौत के बाद जब यमराज के लोक में जाता है, तो यमदूत उसे बांधकर भयंकर दंड देते हैं. उस दंड से उसको बहुत दर्द होता है. इस यातना के बाद वह संसार चक्र में आता है और कीड़े का जन्म लेते है. पन्द्रह वर्ष तक कीड़ा रहने के बाद वह मानव-गर्भ में आकर वहाँ जन्म लेने से पहलेही मर जाता है. इस प्रकार सैंकड़ों बार गर्भ में मौत का कष्ट भोगकर अनेक बार संसार-बंधन में पड़ता है. इसके बाद वह पशु-पक्षियों की योनि में जन्म लेता है. बहुत वर्षों तक कष्ट उठा कर आखिर में वह कछुआ होता है.
दही की चोरी करने से मनुष्य बगुला और मेंढक बनता है, फल, मूल और पूआ चुराने से चींटी और जल की चोरी करने से कौवा और कांसा चुराने से हरीत पक्षी बनता हिया. चांदी का बर्तन चुराने वाला कबूतर और सोने का पात्र चुराने वाला कृमि योनि में जन्म लेता है. रेशम का कीड़ा चुराने वाला बन्दर बनता है. वस्त्र की चोरी करने से तोता और चूर्ण की चोरी करने से मोर बनता है. अंगराग और सुगंध कि चोरी करने पर लोभी मनुष्य छछूंदर बनता है. इस योनि में पंद्रह वर्ष तक रहने के बाद वह मनुष्य योनि में आता है.
जो स्त्री दूध चोरी करती है, वह बगुली बनती है. जो नीच पुरुष खुद सशस्त्र होकर दुश्मनी या धन के लिए किसी निहत्थे की हत्या करता है, वह मरने के बाद गधा बनता है. दो वर्ष तक गधा रहकर वह किसी हथियार से मारा जाता है. फिर हिरन बनकर एक साल वही रहता है और एक वर्ष बाद किसी का शिकार बन जाता है. फिर मछली की योनि में जात है और जाल में फँस जाता है. इसके बाद कालक्रम से पाप का क्षय होने पर मनुष्य योनि में जन्म लेता है. जो व्यक्ति खली मिश्रित अन्न का अपहरण करता है, वह भयंकर चूहा होता है. उसका रंग नेवले जैसा भूरा होता है. घी की चोरी करने वाला कौवा और बगुला बनता है. किसीके द्वारा धरोहर को हड़पने वाला मछली की योनि में जन्म लेता है. पाक का समय समाप्त होने पर मनुष्य रूप में आता है, लेकिन उसकी उम्र बहुत कम होती है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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