 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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भक्त भक्ति:
परमात्मा ने हमें अमूल्य उपहार दिया है देही सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस देही पांच ज्ञानेन्द्रियों पर सप्त ऋषि विराजमान हैं। कितनी महानता है एक-एक अंग की। इसके बारे में विचार करे तो यह अनुभव होगा कि ये परमात्मा ने दिया है।
परमात्मा ने विशेष कृपा की है। हमें अमूल्य से अमूल्य उपहार दिया है। इसे हम व्यर्थ न गवाएं। भगवान ने इसके बदले में कुछ मांगा है। केवल और केवल यह आशा की है जो मनुष्य के पास धन संपत्ति (तन) है। इसका सदुपयोग करें। दुरुपयोग न करें।
सदुपयोग सत्य की ओर ले जाता है। अमरता की ओर किन्तु दुरुपयोग असत्य की ओर नर्क के गर्त की ओर इसलिये इस देह से क्या करें सुनिश्चित है।
हमें इस संसार में मिल कर रहना चाहिए, वो हम और हमारा समस्त कार्य भले प्रकार समाज के हित में करना चाहिये। दूसरों का भला । दूसरों के लिये मंगल कामना, भूखे को भोजन, दूसरों के दुःख दूर करना चाहिये। सत्य पर मरना ही अमरता कहलाती है।
अमर सत्य सन्देश:
रैन का भूषण इंदु है। दिवस का भूषण भानु।
दास का भूषण भक्ति है। भक्ति का भूषण ज्ञान।।
इससे शिक्षा मिलती है कि जीवात्मा का भूषण भक्ति है और भक्ति का ज्ञान और ज्ञान महापुरुषों से प्राप्त होता है। महापुरुषों के आदर्श उच्च जीवन जीना सिखाते हैं, ये जीवन तो बीत ही जायेगा।
इन्सान के निश्चित अवधि यानि गिनती की सांसे लेकर आया है और अवधि पूरी होने पर संसार से कूच कर जायेगा। परम संत कबीर जी साहिब का उपदेश है।
जब तुम जग में आये थे जग हसा तुम रोये।
ऐसी करनी कर चलो तुम हसो जग रोये ।।
यदि महापुरुषों का आशीर्वाद मिल जाये तो उनकी कृपा से अनमोल भक्ति की प्राप्ति सहज में ही हो जाती है।
जिससे लोग सुखी परलोक सुखी।
वो चाल चल की उम्र खुशी से कहे तेरी।।
वो काम कर कि याद तुझे सब किया करे।
जो जिक्र हो तेरा तो हो जिक्र खैर करे।
और नाम तेरा लें तो अदब से लिया करें।।
- पं० प्रमोद
 
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