जीवन में मित्र और शत्रु की पहचान बहुत आवश्यक है मित्र हमें आगे ले जाते हैं ,शत्रु हमें या तो पीछे ले जाते हैं या हम उन्हें पहचान कर उनसे कुछ सीख भी सकते हैं भगवत गीता में मित्र और शत्रु के बारे में कुछ इस प्रकार समझाया गया है।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्यैव रिपुरात्मनः।।
अपने द्वारा संसार रूपी सागर से अपना उद्धार करे और अपने आप को अधोगति में न डाले, क्योंकि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु बन सकता है।
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु जिस जीवात्मा द्वारा मन और इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा को सिर्फ अपना कार्य पूर्ण करना है।
शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ।।
आप स्वयं ही मित्र है और आप ही शत्रु ,जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों को नहीं जीता गया है, उसके लिए वह स्वयं ही शत्रु के समान बर्तता है।
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।
सर्दी और सुख दुखादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्तःकरण की वृत्तियां भली भांति शांत हैं ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्द परमात्मा सम्यक प्रकार से स्थित है।
श्रीमद् भगवद् गीता-
मित्र और शत्रु कौन है मित्र और शत्रु की पहचान कैसे करें, सच्चा मित्र कौन है, मित्र के भेष में शत्रु कौन है।
मित्र और शत्रु दो अलग-अलग पदार्थ हैं जो हमारे जीवन में भूमिका निभाते हैं। मित्र हमारे जीवन में उपयोगी और सहायक होते हैं, जबकि शत्रु हमारे जीवन में हानि और तकलीफ पहुंचाते हैं। दोनों की पहचान करना आवश्यक होता है ताकि हम सही लोगों के साथ जुड़ सकें और नुकसान से बच सकें।
मित्र की पहचान करने के लिए निम्नलिखित चीजें ध्यान में रखें:
समर्थन और समझदारी: सच्चे मित्र हमारे साथ सदैव समर्थन करते हैं और हमारी समस्याओं को समझने की कोशिश करते हैं। वे हमारे साथ खुशियों और दुःखों में हमेशा बने रहते हैं।
विश्वास: मित्रता में विश्वास एक महत्वपूर्ण घटक है। सच्चे मित्र हमेशा आप पर विश्वास करते हैं और आपकी निजी जानकारी को सुरक्षित रखते हैं।
संवेदनशीलता: मित्र कभी भी आपके संवेदनाओं को नजरअंदाज नहीं करते हैं। वे आपके भावनाओं की कद्र करते हैं और समय-समय पर आप का साथ देने की कोशिश करते हैं।
शत्रु की पहचान करने के लिए निम्नलिखित चीजें ध्यान में रखें:
दुर्व्यवहार: शत्रु आपके साथ अनुचित और दुष्कर्मी रवैये का व्यवहार करेंगे। वे आपको आत्मसम्मान से वंचित करने और आपके मान-सम्मान को हानि पहुंचाने की कोशिश करेंगे।
खुदरा सोच: शत्रु हमेशा खुद को महत्वपूर्ण समझते हैं और दूसरों के हित को नजरअंदाज करते हैं। उन्हें अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए किसी भी कीमत पर जाना पसंद होता है।
झूठ और विश्वासघात: शत्रु आपके साथ झूठ बोलते हैं, आप पर विश्वासघात करते हैं, और आपकी निजी जानकारी का दुरुपयोग करते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के भेष में शत्रु कौन है, तो उसके बारे में विश्वासार्ह संकेत हो सकते हैं। यदि व्यक्ति के व्यवहार, भाषा, और कार्यों में आपको संदेह होता है, और वह आपकी सहायता के बजाय हानि पहुंचाने की कोशिश करता है, तो वह शायद आपका मित्र नहीं है, बल्कि शत्रु हो सकता है। ध्यान दें कि ऐसे निर्णय को लेने से पहले आपके पास पर्याप्त और पर्याप्त आधार होना चाहिए।
एक बार आप व्यक्ति की सही पहचान कर लेते हैं, तो आप उससे दूर रह सकते हैं और सही मित्रों को ढूंढने या बनाने के लिए नए व्यक्तियों के साथ जुड़ सकते हैं। अपने विचारों और अनुभवों के आधार पर जीवन में सही मित्रों की पहचान करना महत्वपूर्ण होता है जो आपकी भलाई और आपकी तरक्की में अपना योगदान देता है।
लेखक- अद्भुत जीवन की ओर ..
Bhagirath H Purohit
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