Published By:दिनेश मालवीय

हिन्दू कौन- हिन्दू धर्म के मूल तत्व

संसार के सबसे प्राचीन सनातन धर्म के अनुयाइयों को हिन्दू भी कहा जाता है. यही शब्द आजकल दुनिया भर में सबसे अधिक प्रचलित है. हिन्दू शब्द को लेकर दो मत हैं. एक मत के अनुसार यह शब्द ईरानियों ने दिया है. भारत में सिन्धु नदी बहती थी. ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा, क्योंकि वे “स” का उच्चारण “ह” करते थे. बाद में अरब से आये हमलावरों ने भारत के मूल निवासियों को “हिन्दू” कहना शुरू कर दिया.

दूसरे मत के अनुसार यह नाम प्राचीनकाल से ही प्रचलित है. इस सम्बन्ध में “मेरुतंत्र” “कालिकापुराण” आदि ग्रंथों के अलावा पारसियों की पुस्तक “शातीर में भी “हिन्दू” शब्द के स्पष्ट उल्लेख की बात कही जातीहै. “बृहस्पति आगम” का एक श्लोक है-

हिमालायं समारभ्य यावादिन्दुसरोवरम

तं देवनिर्मितं देशं “हिंदुस्थानं” प्रचक्षते.  

अर्थात- हिमालय पर्वत के “ही”- शब्दोपलक्षित परले किनारे से आरम्भ करके इन्दु-सरोवर=कुमारी अंतरीप के “न्दु” शब्दोपलक्षित अंतिम प्रदेश की समाप्तिपर्यंत देवनिर्मित विस्तृत स्थल का नाम “हि+न्दु=स्थान है.

हिन्दू धर्म के मूल तत्व

बहरहाल हिन्दू धर्म का अनुयायी कौन होता है. किन बातों को मानने वाले व्यक्ति को हिन्दू कहा जाता है? इस विषय में कुछ तत्व शास्त्रों में मिलते हैं. पहला तत्व है, कि जो व्यक्ति ओंकार मूलमंत्र को मानता है. उस पर विश्वास करता है और उसे जीवन में सबसे पवित्र मानता है, वह हिन्दू होता है. दूसरा तत्व यह है, कि हिन्दू पुनर्जन्म में विश्वास करता है. तीसरा तत्व है, कि वह गोभक्त होता है. गोसेवा को परम पुनीत कर्तव्य मानकर गौ के हित में यथाशक्ति योगदान करता है. चौथा यह है, कि वह हिंसा को निंदनीय मानता हो.

इस तत्वों को अब हम विस्तार से समझते हैं. सनातनी व्यक्ति हर एक मंत्र के साथ ओंकार का योग आवश्यक मानता है. उसके लिए यह सभी वेदों का परम पवित्र बीज मंत्र है. स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसे परमात्मा का निज नाम माना है.  सिखधर्म, जैनधर्म और बौद्ध धर्म में भी इसे परम पवित्र माना गया है. सिखधर्म में ”एक ओंकार सतनाम सद्गुरप्रसाद” मंगलाचरण मिलता है. जैनधर्म में “ओं नमो अरिहंताणम” और बौद्ध धर्म का मंत्र है “ओं मणिपद्मे हुम्”. इस प्रकार भारत के सभी धर्मों में ॐ को सर्वोपरि माना गया है.

पुनर्जन्म में भारत के सभी धर्मों का विश्वास है. माना गया है, कि जीव कर्मानुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता रहता है. जीवन कोई एक जन्म का मामला नहीं होकर एक सनातन यात्रा है, जो जीव की मुक्ति तक निरंतर चलती रहती है. कुल चौरासी लाख योनियाँ मानी गयी हैं. इनमें मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ और मोक्ष का साधन माना गया है.  

सनातनी लोग गौ को परम पवित्र मानते हैं. वे गौ की रक्षा के लिये अपने प्राणों का उत्सर्ग करने तक को तैयार रहते हैं.  धर्मसम्राट करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में पांच हज़ार महान संतों ने गौवध निषेध के लिए आन्दोलन किया और ऐसा करने पर पाँच का कारावास भी काटा. गोरक्षा के लिए स्वामी श्रद्धानंद ने परों का उत्सर्ग  किया. स्वामी दयानंद सरस्वती ने “गोकरूणानिधि” नाम से एक स्वतंत्र पुस्तक लिखकर गाय का महत्त्व प्रतिपादित किया है. सिख गुरु गोविन्दसिंहजी ने “दशम ग्रंथ” और “विचित्र नाटक” पुस्तकों में लिखा है, कि-

गऊघात का पाप जग से हटाऊँ.

उन्होंने जीवनभर गौरक्षा के लिए अथक संघर्ष किया. पंजाब का “कूकाविद्रोह” गोरक्षा पर ही  आधारित था. इसमें हज़ारों नामधारी सिखों को अंग्रेज़ों ने तोप से उड़ा दिया. जैनी तो सांस के जरिये भी सूक्ष्म कीटाणुओं की ह्त्या से बचते हैं. गौवध के वे घोर विरोधी हैं. जैन कवि नरहरी के प्रयासों से ही अकबर ने अपने राज्य में गोवध निषेध का फरमान जारी किया था. बुद्ध भगवान् ने “धम्मपद” में लिखा है, कि-

गावो नो परमा मित्ता गावो नो परमं धनम

इस प्रकार भारत में उत्पन्न सभी पाँचों धर्म में गोभक्ति की महिमा गई गयी है.

उपरोक्त तत्वों का जो  ज्ञान नहीं रखता और उनका पालन नहीं करता, वह भले ही किसी हिन्दू परिवार में पैदा हुआ हो, लेकिन वास्तविक अर्थों में हिन्दू नहीं माना जा सकता.

धर्म जगत

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