यथा स्वयम्भूर्नारदः शम्भुः कपिलो मनुः ।
प्रह्लादो द्वादशैते जनको कुमारः भीष्मो बलिर्वैयासकिर्ययम् ॥
विजानीमो धर्म भागवतं भटाः ।
गुहां दुर्बोधं यं ज्ञात्वामृतमश्नुते ॥
विशुद्रं:
अर्थात भगवान के द्वारा निर्मित भागवत धर्म परम शुद्ध और अत्यंत गोपनीय है। उसे जानना बहुत ही कठिन है। जो उसे जान लेता है, वह भगवत्स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। दूतो! भागवत धर्म का रहस्य हम बारह व्यक्ति ही जानते हैं।
ब्रह्माजी, देवर्षि नारद, भगवान शंकर, सनत्कुमार, कपिल, स्वायम्भुव मनु, प्रह्लाद, जनक, भीष्म पितामह, बलि, शुकदेव जी और मैं (धर्मराज)।
सृष्टि के पूर्व यह सम्पूर्ण विश्व प्रलयार्णव के जल में डूबा हुआ था। उस समय एकमात्र श्री नारायण देव शेषशय्या पर पढ़े हुए थे। सृष्टि काल आने पर नारायण की नाभि से एक परम प्रकाशमय कमल प्रकट हुआ और उसी कमल से साक्षात् वेदमूर्ति श्री ब्रह्मा जी प्रकट हुए।
उस कमल की कर्णिका में बैठे हुए ब्रह्माजी को जब कोई लोक दिखायी नहीं दिया, तब वे आँखें फाड़कर आकाश में चारों ओर गर्दन घुमा कर देखने लगे, इससे उनके चारों दिशाओं में चार मुख हो गये।
आश्चर्यचकित श्री ब्रह्माजी कुतूहलवश कमल के आधार का पता लगाने के लिये उस कमल की नाल के सूक्ष्म छिद्रों में होकर उस जल में घुसे। परंतु दिव्य सहस्रों वर्षों तक प्रयत्न करने पर भी कुछ भी पता न मिलने पर अन्त में विफल मनोरथ हो, वे पुनः कमल पर लौट आये।
तदनन्तर अव्यक्त वाणी के द्वारा तप करने की आज्ञा पाकर श्री ब्रह्माजी एक सहस्र दिव्य वर्ष पर्यन्त एकाग्रचित्त से कठिन तप करते रहे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अपने लोक का एवं अपना दर्शन कराया। सफल मनोरथ श्रीब्रह्माजी ने भगवान की स्तुति की।
भगवान ने उन्हें भागवत-तत्त्वका चार श्लोकों में उपदेश दिया, जिसे चतुःश्लो की भागवत कहते हैं। उपदेश देकर भगवान्ने कहा- ब्रह्माजी! आप अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा। फिर भगवान ने अपने संकल्प से ही ब्रह्माजी के हृदय में सम्पूर्ण वेद-ज्ञान का प्रकाश कर दिया|
यथा- 'तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः'- भगवान ने अपने संकल्प से ही ब्रह्माजी को उस वेद ज्ञान का दान किया, जिसके सम्बन्ध में बड़े-बड़े विद्वान लोग भी मोहित हो जाते हैं।
कालान्तर में श्री नारद जी की सेवा से संतुष्ट होकर श्री ब्रह्मा जी ने उनको चतुःश्लोकी भागवत-तत्त्व का उपदेश दिया और देवर्षि नारद जी ने वह तत्त्वज्ञान भगवान वेदव्यास जी को सुनाया और श्री व्यास जी ने चार श्लोकों से ही अठारह हजार श्लोकों के रूप में श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना कर उसे श्री शुकदेव जी को पढ़ाया। इस प्रकार श्रीमद्भागवत का लोक में विस्तार हुआ।
भगवान के द्वारा प्राप्त उपदेश का निरन्तर चिन्तन करते रहने से तथा भगवत्स्वरूप का ध्यान करते रहने से श्री ब्रह्मा जी का अपने मन-वाणी और इन्द्रियों पर इतना अधिकार हो गया है कि सदा-सर्वदा जगत्-प्रपंच में लगे रहने पर भी इनकी वृत्तियाँ स्वप्न में भी असत्य की ओर नहीं जाती हैं।
श्री ब्रह्मा जी के परम सौभाग्य का क्या कहना है? जो कि ये भगवान के समस्त अवतारों के दर्शन-स्तवन करते हैं। 'कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं' इसके अनुसार ब्रह्माजी के अधिकार काल में 3600 बार भगवान के विविध अवतार होते हैं; क्योंकि एक कल्प ब्रह्माजी का एक दिन होता है और सौ वर्ष की ब्रह्मा की आयु में ३६०० कल्प दिन के (उतने ही रात्रि के भी) होते हैं। साथ ही प्रायः अधिकांश अवतार ब्रह्मा जी की प्रार्थना से होते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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