श्रुतियों ने शक्ति-शक्तिमान स्वरूप अद्वय तत्त्व का प्रतिपादन किया है। वही एक तत्त्व परमपुरुष और पराशक्ति रूप से द्विविध है।
वे परमपुरुष जगत् की सृष्टि, स्थिति, संहार के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश स्वरूप होते हैं तो उनकी शक्ति भी इन रूपों के साथ सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती होती है।
परतत्त्व जैसे विष्णु, शिव, राम, कृष्ण रूप में भिन्न होकर भी अभिन्न है, वैसे ही उन त्रिपुर सुन्दरी पराशक्ति के रमा, दुर्गा, सीता, राधा रूप भी नित्य हैं। भिन्न होकर भी अभिन्न हैं वे महाशक्ति की नैष्ठिक उपासना करने वाले शाक्त सम्प्रदायों में भी भगवती के विविध रूप हैं।
महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, गौरी, काली, तारा, चामुण्डा, कुष्मांडा, ललिता, भैरवी, धूमावती, छिन्नमस्ता, दुर्गा, मातंगी आदि रूपों में उनकी उपासना भिन्न-भिन्न विधियों से होती है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री-इन नवदुर्गा रूपों में उन्हीं आदि शक्ति की आराधना होती है। वही शाकम्भरी हैं, वही भ्रामरी हैं, वही कुलकुण्डलिनी हैं और वही योगमाया हैं।
आश्विन एवं चैत्र के नवरात्रों में उनकी उपासना समस्त भारत में व्यापक रूप से होती है। महिषासुर, शुम्भ निशुम्भ आदि प्रबल प्रचण्ड दैत्यों का वध कर आपने जगत की रक्षा की थी। उनकी यह पवित्र गाथा मार्कण्डेय पुराण में ग्रथित है। उसी का नाम 'सप्तशती' है, जिसके अनुष्ठान से लौकिक-पारलौकिक एवं पारमार्थिक सभी प्रकार के मनोरथ सिद्ध होते हैं।
त्रिलोक व्यापी अकाल को अपने शरीर से उत्पन्न शाकों से पूर्ण करने वाली वही महाशक्ति शाकम्भरी कही जाती हैं। उन्होंने ही असुर दुर्ग को मारकर दुर्गा नाम धारण किया है। उनके चरित पुराणों में, तन्त्र ग्रन्थों में सर्वत्र व्याप्त हैं। वही चेष्टा, बल, प्रतिभा, श्री, कान्ति आदि की अधिष्ठात्री हैं। उनके द्विभुज, चतुर्भुज, अष्टभुज, दशभुज, शतभुज एवं सहस्रभुज अनन्त रूप हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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