Published By:बजरंग लाल शर्मा

स्वप्न जगत का दृष्टा एवं साक्षी कौन है?   

चेतन क्या है तथा किसका अंश है?

सृष्टि की रचना हेतु अक्षर पुरुष का मन (ज्योति स्वरूप) माया में प्रतिबिम्बित होकर सर्वत्र व्याप्त हो जाता है। यह अक्षर पुरुष का मन - आत्मा है एवं चेतन उसकी छाया है। आत्मा सत्य है परन्तु चेतन असत्य है। जीव के शरीर में व्याप्त चेतन इस माया के प्रभाव के कारण बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र में पड़ जाता है। यह जीव जड़ शरीर में प्रवेश कर उसे चेतन बना देता है एवं उससे निकल कर उसे निश्चेतन कर देता है। 

जीव क्या है?

जीव का शरीर 25 तत्वों से बना हुआ है, जिनमें 24 तत्व तो माया के तीन गुणों के द्वारा उत्पन्न होते हैं तथा 25 वां तत्व चेतन है जो आत्मा की छाया है। इस चेतन से ही असत्य दृश्य जगत खड़ा होता है।

चित्त की वृत्तियाँ क्या है?

कर्म का कर्ता और भोक्ता कौन है?

जीव का शरीर माया के तीन गुणों से उत्पन्न होता है। इन तीन गुणों से ही विचार उत्पन्न होते हैं, ये विचार ही चित्त की वृत्तियाँ कही जाती हैं। इन विचारों से इच्छा उत्पन्न होती है तथा इच्छा के अनुसार जीव का मन कर्म करता है। इस प्रकार जीव ही कर्म का कर्ता एवं उसका भोक्ता है।

इस दृश्य जगत का दृष्टा कौन है? इसका साक्षी कौन है?

क्या असत्य चेतन को, स्वप्न के पात्र जीव को, तथा कर्म के कर्ता एवं भोक्ता को दृष्टा एवं साक्षी कहा जा सकता है ?

परमात्मा के दो स्वरूप हैं। उसका एक स्वरूप माया की उपाधि सहित इस दृश्य जगत के साथ रहता है और माया के संसार की रचना करता है। परमात्मा का दूसरा स्वरूप परब्रह्म का है जो माया से रहित है। 

इस दृश्य जगत तथा इसको उत्पन्न करने वाली आत्मा (ज्योति स्वरूप ब्रह्म) के मध्य नींद के तीन पर्दे हैं।

1 - नारायण की नींद का पर्दा जिसमें ब्रह्मांड एवं समस्त जीव उत्पन्न होते हैं।

2 - आदिनारायण (ईश्वर अथवा काल पुरुष) की नींद का पर्दा जिसमें अनेकों नारायण उत्पन्न होते हैं।

3 - अक्षर ब्रह्म का महत्व (मोहजल) रूपी नींद का पर्दा जिसमें अनेको आदिनारायण उत्पन्न होते हैं।

ये तीनो पर्दे माया तथा काल के अंदर हैं। इन तीनों पर्दों के अंदर जो भी उत्पन्न होते हैं, वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अतः इनमे से कोई भी दृष्टा नहीं हो सकता है।

ब्रह्म का जो स्वरूप माया की उपाधि (दृश्य जगत) के साथ रहता है, वह असत्य चेतन है तथा सदा सोइ हुई अवस्था में रहता है। इसके विपरीत आत्मा सदैव जागृत रूप में होने से इस दृश्य जगत की वास्तविक दृष्टा है। असत्य चेतन वास्तविक दृष्टा नहीं है।

ये तीनो पर्दे माया तथा काल के अंदर हैं। इन तीनों पर्दों के अंदर जो भी उत्पन्न होते हैं, वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अतः इनमे से कोई भी दृष्टा नहीं हो सकता है। जो कर्म का कर्ता तथा भोक्ता है, जन्म एवं मृत्यु को प्राप्त होता रहता है वह स्वप्न का पात्र जीव, दृष्टा नहीं हो सकता है।

सार - जो सत्य हो, जो काल तथा माया के अंतर्गत नहीं हो, जो कर्म का कर्ता तथा भोक्ता नहीं हो, जो अजन्मा हो, जो अकर्ता हो, जो माया के तीन गुणों से रहित हो वही वास्तविक दृष्टा हो सकता है। जो दृष्टा नहीं हो सकता वह साक्षी भी नहीं हो सकता है। साक्षी का अर्थ है - गवाह। जो सब कारणों का कारण है वही साक्षी हो सकता है।    

अक्षर पुरुष का मन (ज्योति स्वरूप) आत्मा है और अक्षर पुरुष स्वयं उस का स्वामी है। यह मन रूपी आत्मा अक्षर पुरुष से अलग नहीं है, अक्षर पुरुष साक्षी है।

"परमात्मा का परब्रह्म स्वरूप हम सब से दूर है। पांच तत्वों से बने ब्रह्मांड से परे अपरा  शक्ति (माया) का आवरण है, अपरा शक्ति के आवरणों से परे अहंकार तत्व है, अहंकार से परे मोह-तत्व है, मोह तत्व से परे प्रकृति है, प्रकृति से परे ब्रह्म है, ब्रह्म से भी परे परब्रह्म है।"

बजरंग लाल शर्मा 

 

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