ये तीनों काशिराज इंद्रद्युम्न की कन्याएँ थीं, जो इसी क्रम से बड़ी छोटी भी थीं। इनके वयस्क होने पर पिता ने स्वयंवर रचाया और घोषणा की कि जो सबसे बलवान हो, इनका हरण कर ले। उस समय विचित्रवीर्य के नाम पर भीष्म हस्तिनापुर का राज्य चला रहे थे।
स्वयंवर का समाचार मिलते ही वे काशी गए और अपने बल से तीनों कन्याओं का हरण कर लाए। कन्याएं सोचती थी कि महाबली भीष्म उनसे विवाह करेंगे। परंतु जब उन्हें भीष्म के आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत की जानकारी हुई और विचित्रवीर्य से उनके विवाह की बात आई तो अंबा ने कहा कि वह शाल्व से प्रेम करती है। इस पर उसे शाल्व के पास भेजा गया। पर दूसरे की जीती हुई कन्या से विवाह करना शाल्व ने अस्वीकार कर दिया।
वहां से तिरस्कृत होकर अंबा ने भीष्म पर जोर डाला कि उन्होंने उसे जीता है, इसलिए वे उनसे विवाह करें। जब भीष्म तैयार नहीं हुए तो क्रुद्ध अंबा भीष्म से बदला लेने के लिए शिव की तपस्या करने चली गई।
तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उसे वरदान दिया कि अगले जन्म में तुम राजा द्रुपद के घर कन्या रूप में जन्म लेकर फिर पुरुषत्व प्राप्त करोगी और तुम्हारा नाम शिखंडी होगा। तब तुम भीष्म की मृत्यु का कारण बनोगी। इसी वरदान के कारण महाभारत युद्ध में शिखंडी को (जो जन्मना नारी था) सामने करके अर्जुन ने भीष्म को मारा था।
अंबिका और अंबालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ हुआ, पर उसकी निःसंतान मृत्यु हो गई। इस पर इन दोनों ने अपनी सास सत्यवती और भीष्म के कहने पर व्यास से नियोग द्वारा संतानें प्राप्त की। सबसे छोटी अंबालिका के गर्भ से पांडु उत्पन्न हुए। गर्भधारण के समय वह भय से पीली पड़ गई थी, इसी से पांडु पीले रंग के पैदा हुए।
अंबिका ने धृतराष्ट्र को जन्म दिया। उसने भी व्यास की मुखाकृति देखकर आंखें बंद कर ली थी, जिससे धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे पैदा हुए। अच्छे पुत्र की कामना से सास ने इसे फिर व्यास के पास भेजा। लेकिन दोबारा वह स्वयं नहीं गई, बल्कि एक दासी को भेज दिया। इस दासी के गर्भ से विदुर ने जन्म लिया|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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