Published By:धर्म पुराण डेस्क

 बड़ा कौन..

 बड़ा कौन..

एक गुप्ता जी थे जो एक कपड़े की बहुत बड़ी फैक्ट्री के मालिक थे। कुछ दिनों बाद गुप्ता जी को प्रभु से लौ लग गयी। उनके जीवन में ऐसा कुछ घटा कि उन्होंने अपनी फैक्ट्री और सारा कारोबार बंद कर दिया और सन्त बन गए। अब लोग उन्हें संत के नाम से जानने लगे|

अब गुप्ता जी सिर्फ प्रभु भक्ति करते और शाम को सत्संग में बैठते और अपने अनुयायियों को प्रवचन देते।

एक दिन गुप्ता जी ने अपने अनुयायियों को अपने व्यवसायी से संत बनने की घटना सुनाई!

गुप्ता जी ने कहा कि "एक दिन जब मैं अपनी फैक्ट्री में बैठा था उसी समय एक कुत्ता घायल अवस्था में वहाँ आया। वो किसी गाड़ी से कुचल गया था जिससे उसके तीन पैर टूट गए थे और वो सिर्फ एक पैर से घिसटते हुये फैक्ट्री तक आया था। 

मुझे बहुत तरस आया और मैंने सोचा कि उस कुत्ते को किसी जानवरों के अस्पताल ले जाऊँ, मगर फिर अस्पताल के लिए तैयार होते समय मेरे दिमाग़ में एक बात आई और मैं रुक गया। मैंने सोचा कि अगर प्रभु हर किसी को खाना देता है तो मुझे अब देखना है कि इस कुत्ते को अब कैसे खाना मिलेगा। 

रात तक दूर बैठे मैं, उसे देखता रहा । फिर... अचानक मैंने देखा कि एक दूसरा कुत्ता फैक्टरी के दरवाज़े से नीचे घुसा और उसके मुँह में रोटी का एक टुकड़ा था... उस कुत्ते ने वो रोटी उस कुत्ते को दी और घायल कुत्ते ने बड़े ही कृतज्ञ भाव से उसे खाया! फिर ये रोज़ का काम हो गया! 

वो कुत्ता वहाँ आता और उसे रोटी या कोई और खाने की चीज़ देता और वो घायल कुत्ता ऐसे खा- खा कर चलने के योग्य बन गया। अब, मुझे यह देखकर अपने प्रभु पर ऐसा भरोसा हो गया कि मैंने अपनी फैक्ट्री बंद की ! 

व्यापार पर ताला लगाया और प्रभु की राह में निकल पड़ा और संत बनने के बाद भी मेरे पास किसी न किसी बहाने से पैसे उसी तरह रहे आते रहे जैसे पहले आते थे। ठीक वैसे, जैसे उस कुत्ते को दूसरा कुत्ता रोटी प्रतिदिन खिलाता था।"

गुप्ता जी की ये कहानी सुनकर उनका एक अनुयायी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा। गुप्ता जी ने जब कारण पूछा तो उसने कहा कि "आदरणीय गुप्ता जी, आपने ये तो देख लिया कि प्रभु ने उस कुत्ते का पेट भरा मगर आप ये न समझ सके कि उन दो कुत्तों में से बड़ा कुत्ता कौन है? 

जो घायल होकर बिना प्रयास किये खाना खा रहा है वो बड़ा है या जो कुत्ता उसे ला कर खिला रहा है वो बड़ा है? आप खाना खाने वाले घायल कुत्ते बन गए और अपना कारोबार बंद कर दिया.. जबकि पहले आप खाना खिलाने वाले कुत्ते थे क्यूंकि आपकी फैक्ट्री से हज़ारों लोगों को खाना मिलता था|

आप खुद बताइये कि पहले जो काम आप कर रहे थे वो प्रभु की नज़र में बड़ा था या अब जो कर रहे हैं वो?"

 यह सुनकर गुप्ता जी की आँखें खुल गयी और उन्होंने दूसरे ही दिन अपनी फैक्ट्री और कारोबार फिर से शुरू कर दिया। अब संत गुप्ता जी फिर से व्यवसायी गुप्ता जी बन गए।

अपना कर्म करना न छोड़ें..!

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूँ॥

 इस श्लोक में चार तत्व  हैं – 

1. कर्म करना हमारे हाथ में है ।

2. कर्म का फल किसी और के हाथ में है ।

3. कर्म करते समय फल की इच्छा मत करो ।

4. फल की इच्छा छोड़ने का यह अर्थ नहीं है की हम कर्म करना ही छोड़ दें ।

                                                                                                                      कमल किशोर दुबे

   


 

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