गोस्वामी तुलसीदास की “श्रीरामचरितमानस” बीती चार शताब्दियों से भक्तों और साहित्यकारों का कंठहार बनी हुयी है. यह एक ऐसा अनूठा महाकाव्य है, जिसे अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति भी समझता है. हर व्यक्ति को इसकी चार-छह चौपाइयां तो रटी ही रहती हैं. भारत में समाज को संस्कारित और आचरणवान बनाए रखने और उसका आत्मगौरव फिर से जगाने में इस महाकाव्य ने सबसे अधिक महत्वपुर्ण भूमिका निभायी है. रामचरितमानस का अयोध्याकाण्ड बहुत अद्भुत है. इसमें ऐसे-ऐसे अलौकिक प्रसंग आते हैं, जिन्हें पढ़-सुनकर भक्त आत्मविभोर हो जाते हैं. वे इससे बहुत सुंदर संदेश ग्रहण करते हैं. इस काण्ड में भगवान् श्रीराम के अपनी धर्मपत्नी सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वनवास जीवन का बहुत सजीव वर्णन किया गया है. भगवान् ऋषियों के आश्रमों में जाते हैं और उन्हें राक्षसों से धर्म की रक्षा के प्रति आश्वस्त करते हैं. उनसे भगवान् के वार्तालाप के एक से एक बढ़कर ज्ञान और भक्तिप्रद प्रसंग हैं.
भगवान् का महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में जाना एक बहुत महत्वपूर्ण प्रसंग है. महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के ईश्वर स्वरूप को जानते थे, लिहाजा उन्होंने उनके साथ वैसा ही सम्मानजनक व्यवहार किया. श्रीराम भी वाल्मीकिजी की आध्यात्मिक समृद्धि और तपोबल से परिचित थे, सो उन्होंने ने भी उनके साथ उतने ही सम्मान के साथ व्यवहार किया. दोनों एक-दूसरे से मिलकर भावविह्वल हो गये. महर्षि के आश्रम से विदा होते समय एक बहुत सुंदर प्रसंग उपस्थित हुआ. भगवान् श्रीराम ने वाल्मीकिजी से पूछा, कि मैं कहाँ रहूँ? यानी वनवास के दौरान किस जगह अपना निवास बनाऊँ? तत्वज्ञानी महर्षि वाल्मीकि भी कौतुक करने में कोई कम नहीं थे. उन्होंने इस बहाने भक्तों के हित में ऎसी बातें कहीं, जो ईश्वर की भक्ति में बहुत सहायक हैं. महर्षि ने ब्याज रूप से ऐसे चौदह स्थान बताये, जहाँ भगवान् को अपना निवास करना चाहिए. महर्षि कहते हैं, कि मैं आपको वह स्थान बताता हूँ, जहाँ आप श्रीसीताजी और लक्ष्मणजी के साथ निवास करें. दरअसल ये चौदह प्रकार की साधनाएँ हैं.
पहला निवास उन भक्तों के ह्रदय है, जिनके कान ऐसे समुद्र के समान हैं, जो आपकी कथारूपणी अनेक सुंदर नदियों से सदा पूर्ण रहते हैं. जिनकी श्रद्धा कभी कम नहीं होती. ऐसे लोगों के ह्रदय में आप निवास कीजिए. इस तरह भगवान् की कथा और गुण श्रवण भक्ति का पहला स्वरूप है. वाल्मीकि ने कहा,कि आपको दूसरा स्थान बताता हूँ. आप उन लोगों के ह्रदय में निवास कीजिए, जिन्होंने अपने नेत्रों को चातक बना रखा है और आपके दर्शन रूपी मेघों के लिए हमेशा लालायित रहते हैं. यानी जो लोग आपके दर्शन के लिए हमेशा व्याकुल रहते हैं. तीसरा स्थान उन लोगों के ह्रदय हैं, जिनकी जिव्हा आपके यशरूपी निर्मल मांस-सरोवर में हंसिनी रूप होकर आपके गुणसमूह रूपी मोती समूह को चुगती है. हंस,मानसरोवर में रहता है और मोती चुगता है. उसी तरह जो भक्त आपके गुणों को आत्मसात करते हैं, आप उनके ह्रदय में रहिये.
चौथा स्थान उन भक्तों के ह्रदय हैं, जिनकी नासिका नित्य आदरपूर्वक आपको अर्पित सुगंध को सूंघती है. जो आपको अर्पित भोजन को प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं. जिनके पांव सदा तीर्थ यात्रा के लिए उठते हैं. हर वस्तु आपको अर्पित करके ही ग्रहण या सेवन करते हैं. आपका पाँचवां निवास स्थान उन लोगों के ह्रदय हैं, जो नित्य आपके नाम का मंत्र जपते हैं. परिवार के साथ आपका पूजन करते हैं. अपने ह्रदय में गुरु के प्रति सच्चा स्नेह रखते हैं और उनकी सेवा करते हैं. छठा स्थान ऐसे लोगों के ह्रदय हैं, जिनके मन में न तो काम, क्रोध, मद, मान और मोह है और न लोभ और छोभ है. जो सबसे प्रेम करते हैं और जिनका किसीसे बैर नहीं है. जिनके मन में कपट, दंभ और माया नहीं होती. जो अपनी निंदा और स्तुति दोनों में समभाव रखते हैं. सातवाँ स्थान उन लोगों के ह्रदय हैं, जिनकी आपके सिवा किसी और में गति नहीं है. जिनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य आपकी सेवा करना है. जो विचारकर प्रिय और सत्य बोलते हैं. जो जागते-सोते सिर्फ आपकी ही शरण रहते हैं.
आठवां स्थान उन लोगों के ह्रदय हैं, जो दूसरे की स्त्री को माता के समान जानते हैं. जिनके लिए पराया धन विष से भी भारी विष है. जो दूसरे की सम्पत्ति देखकर प्रसन्न होते हैं और दूसरे की विपत्ति देखकर उससे भी अधिक दुखी हो जाते हैं. नवां स्थान उन लोगों के ह्रदय हैं, जिन्हें आप प्राणों से अधिक प्रिय हैं. जिनके मन आपके पवित्र भवन हैं. जिनके स्वामी, सखा, पिता, माता, गुरु सबकुछ आप ही हैं. जो जीवन में आपको ही सबकुछ मानते हैं. दसवां निवास स्थान उन लोगों का ह्रदय है, जो अवगुणों को छोड़कर सबके गुणों को ग्रहण करते हैं. ज्ञानवान और पवित्र लोगों तथा गौ के लिए क्लेश सहते हिं. जो नीति में निपुण होंने हैं और जगत में मर्यादा का पालन करते हैं. ग्यारहवां निवास स्थान उनके ह्रदय हैं, जो यह मानते हैं, कि हमसे जो कुछ अच्छा बन पडा वह आपने किया और जो गलत हो गया वह हमने किया. जिन्हें रामभक्त प्रिय हैं.
आपका बारहवां निवास स्थान उन लोगों का ह्रदय है, जो जाति,पांति, धन, धर्म, बडाई, प्रिय, कुटुंब और सुखदायक घर आदि सब छोड़कर केवल आपमें ही लौ लगाए रहते हैं. आपका तेरहवां निवास उन लोगों के ह्रदय हैं, जिनके स्वर्ग, नरक और मोक्ष एक समान हैं. जो जहाँ-तहाँ सब जगह धनुष-वाण धारण किये सिर्फ आपको देखते हैं. जो कर्म-वचन और मन से आपके सेवक हैं. वाल्मीकि ने चौदहवां निवास स्थान यह बताया, कि आप उन लोगों के ह्रदय में रहिये, जो स्वाभाविक रूप से आपसे प्रेम करते हैं. उनके मन में निरंतर वास कीजिए. इस प्रसंग को पढ़ते हुए भक्तों को ऐसा लगता है, जैसे गंगास्नान कर लिया हो. भगवान् महर्षि वाल्मीकि की इस चतुराई पर मुस्करा दिये. इसके बाद महर्षि ने कहा, कि आप चित्रकूट गिरि में निवास कीजिए, जो आपके लिए सब प्रकार से सुखद होगा.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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