Published By:धर्म पुराण डेस्क

 किसकी उपासना श्रेष्ठ है देवताओं की या भगवान की

आमतौर पर मनुष्य साधना उपासना को लेकर भ्रमित रहता है उसके मन में अनेक प्रकार के प्रश्न होते हैं आखिर वह किस देवता की उपासना करें किसकी पूजा करें. 

देवता कौन है, भगवान कौन है और किसकी उपासना से क्या फल प्राप्त होगा?

धर्म शास्त्र कहते हैं कि देवताओं की उपासना करने वाले तो अधिक-से-अधिक देवताओं के पुनरावर्ती लोकों में ही जा सकते हैं, पर भगवान की उपासना करने वाले भगवान को ही प्राप्त होते हैं। 

हाँ, अगर साधक की देवताओं में भगवद्बुद्धि हो अथवा अपने में निष्काम भाव हो तो उसका उद्धार हो जाएगा अर्थात वह भी भगवान को प्राप्त हो जाएगा। परन्तु देवताओं में भगवद्बुद्धि न हो और अपने में निष्काम भाव भी न हो तो उद्धार नहीं होगा।

स्वामी रामसुखदास जी कहते हैं देवताओं की उपासना का दोष यह है कि उसका फल अंत वाला अर्थात नाशवान् होता है; क्योंकि देवता खुद भी सीमित अधिकार वाले हैं। अतः जो भगवान को छोड़कर अन्य देवताओं की उपासना करते हैं, वे अल्प बुद्धि वाले हैं। 

यदि वे अल्प बुद्धि वाले न होते तो नाशवान फल देने वाले देवताओं की उपासना क्यों करते ? भगवान की ही उपासना करते अथवा देवताओं में भगवद्बुद्धि करते।

भगवान की उपासना तो बड़ी सुगम है, उसमें विधि की, नियम की, परिश्रम की जरूरत नहीं है। उसमें तो केवल भाव की ही प्रधानता है। परन्तु देवताओं की उपासना में क्रिया, विधि और पदार्थ की प्रधानता है।

मनुष्य को संसार की कितनी ही विद्याओं का, कला-कौशल आदि का ज्ञान हो जाए तो भी वह 'कल्पमेधा' (तुच्छ बुद्धि वाला) ही है। 

वह ज्ञान वास्तव में अज्ञान को दृढ़ करने वाला है परन्तु जिसने भगवान को जान लिया है, उसको किसी सांसारिक विद्या, कला-कौशल आदि का ज्ञान न होने पर भी वह 'सर्ववित्' (सब कुछ जाननेवाला) है!


 

धर्म जगत

SEE MORE...........