प्रश्न- आजकल पाखण्डी साधुओं का अधिक प्रचार क्यों होता है?
उत्तर- इसमें कलियुग सहायता करता है। यदि पाखण्डी साधुओं का प्रचार नहीं होगा तो कलियुग कैसे कहलायेगा? वास्तव में पाखण्डी साधुओं का प्रचार केवल भभका होता है, जो स्थायी नहीं होता। असली, त्यागी साधु का प्रचार स्थायी होता है। उसके द्वारा लोगों का स्थायी और असली हित होता है। जिसके भीतर थोड़ी भी भोगवासना होती है, उसके द्वारा लोगों का असली हित नहीं होता।
इस चिंता का यदि प्राधान्य दिया जाए कि क्यों पाखण्डी साधुओं का अधिक प्रचार होता है, तो कई कारक विचार में आते हैं:
मनःपिदा: कलियुग के साथ लोगों के मनोबल में कमी हो रही है और वे आध्यात्मिक सत्य के प्रति आस्था खो रहे हैं। इसका परिणाम स्थानीय और आध्यात्मिक निर्देशकों के प्रति अधिक आवश्यकता की ओर बढ़ना हो सकता है।
अर्थ और यात्रा: कुछ लोग आध्यात्मिक साधना को आर्थिक और यात्रिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करते हैं, और इससे पाखण्डी साधुओं का अधिक प्रचार हो सकता है.
भ्रम: व्यक्तिगत लाभ के लिए विश्वासहीन लोग पाखण्डी साधुओं के चारों ओर आकर्षित हो सकते हैं और उनके वचनों में धार्मिक और आध्यात्मिक सत्य की तुलना में अधिक आश्वासन खो देते हैं.
उत्तर में यह भी कहा जा रहा है कि इन पाखण्डी साधुओं का प्रचार केवल भ्रमक होता है, जो स्थायी नहीं होता। इसके बजाय, असली और त्यागी साधुओं का प्रचार ही स्थायी हित प्रदान करता है। असली साधु सत्ययुग की तरह नीति, त्याग, और आध्यात्मिकता के प्रतीक होते हैं, जिनके द्वारा लोगों का सच्चा हित होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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