 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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अब अयोध्या में बनने वाली भगवान राम की विशाल प्रतिमा आधार से छत्र तक 823 फीट (251 मीटर) की होगी।
हाल ही में तमिलनाडु के सलेम जिले के पुथिरगौंडन पालयम में भगवान मुरुगन की प्रतिमा का अनावरण किया गया। सलेम-चेन्नई राष्ट्रीय राजमार्ग पर एथापुर में श्री मुथुमलाई मुरुगन थिरुकोविल में स्थित प्रतिमा की ऊंचाई 146-फीट है।
जो मलेशिया में पथुमलाई मुरुगन की 140 फीट की प्रतिमा से 6 फीट अधिक ऊंची है। इस प्रकार सलेम में स्थापित इस प्रतिमा को विश्व की सबसे ऊंची मुरुगन प्रतिमा का दर्जा प्राप्त हो गया है।
इस ऐतिहासिक व उत्सवी माहौल में जब सलेम में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई, उस पर हेलीकॉप्टर से गुलाब की पंखुड़ियां बरसाई गईं। अभिषेक के बाद आम दर्शनार्थियों के लिए मंदिर परिसर खोल दिया गया।
सलेम में मुरुगन की प्रतिमा स्थापित करने की प्रेरणा मलेशिया की मुरुगन प्रतिमा से ही मिली थी। श्री मुथुमलाई मुरुगन ट्रस्ट के अध्यक्ष, नटराजन श्रीधर अपने गृहनगर अत्तूर में मुरुगन की सबसे ऊंची मूर्ति बनाना चाहते थे।
श्रीधर की सोच थी कि हर कोई मलेशिया जाकर मुरुगन के दर्शन व पूजा नहीं कर सकता है, इसलिए उसे सलेम जिले में ही उनकी प्रतिष्ठा होगी। बाद में 2014 में, श्रीधर, जो एक व्यवसायी भी हैं, ने अपनी जमीन पर एक मंदिर और मुथुमलाई मुरुगन की मूर्ति बनाने का संकल्प किया।
श्री मुथुमलाई मुरुगन ट्रस्ट के अध्यक्ष, नटराजन श्रीधर के अनुसार निर्माण को पूरा करने में 6 साल का समय लगा। हमने 2016 में मूर्ति का काम शुरू किया था और 6 अप्रैल को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम तक लगभग काम पूरा हो गया था। यह सारा काम ट्रस्ट और श्रद्धालुओं से सहयोग से हुआ है।
श्रीधर ने मूर्ति के निर्माण के लिए मूर्तिकार तिरुवरुर त्यागराजन की ही सेवाएं ली। दिलचस्प बात यह है कि वह वही मूर्तिकार थे जिन्होंने 2006 में मलेशिया में मुरुगन की मूर्ति का निर्माण किया था।
मलेशिया में भगवान मुरुगन की मूर्ति बाटू गुफाओं के आधार पर स्थित है और भारत के बाहर सबसे लोकप्रिय हिंदू मंदिरों में से एक है। यह मलेशिया की सबसे ऊंची हिंदू प्रतिमा है और मूर्तिकारों द्वारा इसे बनाने में तीन साल लगे थे।
इस अद्भुत संरचना के निर्माण के लिए 350 टन स्टील बार, 300 लीटर गोल्ड पेंट और 1,550 क्यूबिक मीटर की आवश्यकता थी। इसके अलावा, मूर्ति को तराशने के लिए भारत से 15 मूर्तिकारों को लाया गया था।
इसे सुनहरे रंग से रंगा गया है और यह प्रबलित कंक्रीट (Reinforced concrete) से बना है। यह प्रतिमा बाटू गुफाओं को जाने वाली 272 सीढ़ियों के बगल में है।
कार्तिकेय या मुरुगन एक लोकप्रिय हिन्दु देवता हैं और इनके अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में की जाती है इसके अतिरिक्त विश्व में जहाँ कहीं भी तमिल निवासी रहते हैं जैसे कि श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि में भी यह पूजे जाते हैं। यह भारत के तमिलनाडु राज्य के रक्षक देव भी हैं।
ये भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे बड़े पुत्र हैं। इनके छोटे भाई बहन हैं देवी अशोकसुन्दरी, भगवान अयप्पा, देवी ज्योति, देवी मनसा और भगवान गणेश हैं। इनकी दो पत्नियां हैं जिनके नाम हैं देवसेना और वल्ली।
देवसेना देवराज इंद्र की पुत्री हैं जिन्हें छठी माता के नाम से भी जाना जाता है। वल्ली एक आदिवासी राजा की पुत्री हैं ।
कार्तिकेय जी भगवान शिव और भगवती पार्वती के पुत्र हैं । ऋषि जरत्कारू और राजा नहुष के बहनोई हैं और जरत्कारू और इनकी छोटी बहन मनसा देवी के पुत्र महर्षि आस्तिक के मामा ।
भगवान कार्तिकेय छ: बालकों के रूप में जन्मे थे तथा उनकी देखभाल कृतिका (सप्त ऋषि की पत्नियों) ने की थी, इसलिए उन्हें कार्तिकेय धातृ भी कहते हैं। कार्तिकेय ने ही राक्षस तारकासुर का संहार किया था।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एक बार ऋषि नारद मुनि एक फल लेकर कैलाश गए दोनों गणेश और कार्तिकेय में फल को लेकर बहस हुई जिस कारण प्रतियोगिता (पृथ्वी के तीन चक्कर लगाने) आयोजित की गयी ताकि विजेता को फल दिया जा सके।
जहां मुरूगन ने अपने वाहन मयूर से यात्रा शुरू की वहीं गणेश जी ने अपनी माँ और पिता के चक्कर लगाकर फल खा लिया जिस पर मुरूगन क्रोधित होकर कैलाश से दक्षिण भारत की ओर चले गए थे।
मुरुगन को देव दानव युद्ध में देवों के सेनापति के रूप में पूजा जाता है। इसी कारण मुरुगन को देवताओं से सदैव युवा रहने का वरदान प्राप्त हो गया था।यही वजह है कि मुरुगन का पूजन युवा और बाल्य रूप में ही किया जाता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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