Published By:दिनेश मालवीय

राक्षसों को मारने विश्वामित्र ने श्रीराम को क्यों मांगा....दिनेश मालवीय 

राक्षसों को मारने विश्वामित्र ने श्रीराम को क्यों मांगा....दिनेश मालवीय 

क्या महाराज दशरथ की सेना कमज़ोर थी ऋषि ने राक्षसों को श्राप देकर नष्ट क्यों नहीं किया इस प्रसंग में हमने श्री रामकथा के एक महत्वपूर्ण प्रसंग में जिज्ञासुओं के मन की कुछ जिज्ञासाओं की चर्चा की है। शास्त्रों के प्रकाश में इनके समाधान का प्रयास किया है।  

श्री राम ने सीता को ऐसा करने से क्यों मना किया?

रामकथा मे ऋषि विश्वामित्र की बहुत अहम भूमिका है। वह एक ऐसे महापुरुष हैं, जिन्होंने क्षत्रिय वंश में उत्पन्न होकर तपस्या के बल से ब्राह्मणत्व प्राप्त किया। वह यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने बहुत कठोर तप करके ब्रह्मर्षि की सर्वोच्च पदवी हासिल की। वह श्रीराम के गुरु थे। वह पहले बहुत प्रतापी राजा थे। इस प्रकार उन्हें शस्त्र और शास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान था। 

ऋषि वशिष्ठ के अनुसार त्रेता युग में विश्वामित्र के समान कोई नहीं था। रामकथा को पढ़ने वाले लोगों मे इस बात को लेकर कितनी जिज्ञासाएँ हैं कि विश्वामित्र जब इतने समर्थ थे, तो अपने यज्ञों की रक्षा स्वयं क्यों नहीं कर पाये? इसके लिए वह श्रीराम को भेजने की याचना करने महाराज दशरथ के पास क्यों गए? यह भी कैसी विडम्बना थी कि जिन दशरथ ने कभी एक बहुत बड़े युद्ध मे रावण को बहुत बुरी तरह पराजित किया था, वही आज उसके सामने खड़ा होने तक मे असमर्थता बता रहे थे। 

रामायण के अनुसार श्रीराम-सीता से पति-पत्नी को लेनी चाहिए ये सीख विश्वामित्र ने महाराज दशरथ से अपनी सेना भेजने को क्यों नहीं कहा, जबकि दशरथ जी ने यह प्रस्ताव किया था। आइये, शास्त्रों के प्रकाश में इन जिज्ञासाओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। योगवासिष्ठ के अनुसार विश्वामित्र ने दशरथ जी से कहा कि मैं यज्ञ अनुष्ठान कर रहा हूँ। इस कारण क्रोध नहीं कर सकता। बिना क्रोध किये श्राप भी नहीं दिया जा सकता। इससे इस जिज्ञासा का समाधान हो जाता है कि विश्वामित्र ने समर्थ होते हुए भी राक्षस को श्राप देकर नष्ट क्यों नहीं किया। उनके समान दिव्य अस्त्र भी किसी के पास नहीं थे। 

लेकिन इसी कारण वह उनका उपयोग नहीं कर सकते थे। योगवासिष्ठ के अनुसार जब महाराज दशरथ से अपने यज्ञ की रक्षा के लिए  श्रीराम को भेजने की याचना करने गये, तब श्रीराम की आयु महज सोलह वर्ष थी। महाराज दशरथ ने श्रीराम को न भेजने के लिए अनेक तर्क दिये, जिनमें उनकी इतनी कम आयु होने की बात भी शामिल थी। 

दशरथ जी ने कहा कि श्रीराम जो खिलौने वाले अस्त्र शस्त्र ही चलाते हैं। उन्हें वास्तविक शस्त्र चलाने का अभ्यास नहीं है। वह इतने कोमल हैं कि भयानक राक्षसों का सामना कैसे कर सकते हैं। लेकिन सर्वज्ञ विश्वामित्र तो श्रीराम के वास्तविक स्वरूप को जानते थे। इसके अलावा महर्षि वशिष्ठ ने भी विश्वामित्र की बात का समर्थन किया। 

यह सही है कि महाराज दशरथ ने प्रस्ताव दिया था कि श्री राम की जगह वह स्वयं अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ चलने को तैयार हैं। लेकिन वह जानते कि वह और उनकी सेना दुर्धर्ष राक्षसों का सामना नहीं कर सकते।  

Ramayana: ऐसे हुई थी श्रीराम और हनुमान की मुलाकात और बन गया था अटूट रिश्ता योगवासिष्ठ मे दशरथजी कहते हैं कि रावण,मेघनाद, मधुपुत्र लवण, मारीच, सुबाहु आदि से लड़ने मे हम असमर्थ हैं। दशरथ जी आगे कहते हैं कि किसी समय किसी समुदाय मे विपुल धन और सम्पति सम्पन्न पुरुषों का उदय होता है, लेकिन कालांतर में उनका विनाश हो जाता है। 

आज हम लोग रावण आदि के सामने खड़े होने मे समर्थ नहीं हैं। महर्षि वशिष्ठ रघुकुल के गुरु थे। वह विश्वामित्र के अनुरोध के पीछे के सारे रहस्य जानते थे। उन्हें पता था कि विश्वामित्र के साथ जाने में श्रीराम का कल्याण होगा। ऐसा ही हुआ भी।  श्री राम और लक्ष्मण ने दस दिन मे ही भयंकर राक्षसों का संहार कर विश्वामित्र के यज्ञ को सफल कर दिया। 

विश्वामित्र ने श्रीराम को सारे दिव्यास्त्र प्रदान कर उनके संचालन तथा वापस बुलाने की शिक्षा दी। साथ ही बला और अतिबला विद्या भी सिखायीं। इन विद्याओं के बल से उन्हें भूख प्यास नहीं लगती थी फिर भी उनके तेज और बल में कोई कमी नहीं आती। ये सभी अस्त्र और सिद्धियां जीवन भर श्रीराम के लिए बहुत सहायक हुयी। आसुरी शक्तियों से धरती को मुक्त कराने आये थे भगवान श्रीराम मित्रो, हम आशा करते हैं कि रामकथा के इस प्रसंग में आपको होने वाली जिज्ञासाओं का समाधान अवश्य हो गया होगा। 

Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.


 

धर्म जगत

SEE MORE...........