दोस्तों आज की दुनिया में बीमारियों से कौन बच रहा है हर व्यक्ति किसी न किसी रोग से ग्रसित है. डिसीज आज की लाइफ स्टाइल में लोगों के जीवन का इंपॉर्टेंट पार्ट हो गई है.
लोगों ने खुद ही इन रोगों को महत्व दिया है। इसलिए यह बढ़ते चले जा रहे हैं। रोग इसलिए है क्योंकि लोग उनको खुद आमंत्रण देते हैं। इसलिए रोगों से मुक्ति पानी है तो रोगों के कारण को समझना पड़ेगा और रोगों का कारण व्यक्ति के स्वयं के प्रारब्ध उसकी जीवन योजना से जुड़े होते हैं।
कई बार आत्मा अपने उद्धार के लिए खुद कष्ट और रोग चुनती है। आत्मा लाइफ लेसन सीखने के लिए भी रोग चुनती है। जन्म से पहले ही रोग की योजना तैयार हो जाती है। ताकि उससे कुछ सबक मिल सके. यदि व्यक्ति रोग होने के बाद मूल्यांकन करें कि इस रोग से हमारा अंतर्मन प्रकृति या भगवान हमें क्या सिखाने जा रहा है तो उसे ठीक करने रोग अपने आप दूर हो जाएगा
रोगों से वही व्यक्ति भयभीत हो सकता है जो स्वास्थ्य के मूल्य को समझ पाता है। जिसने स्वास्थ्य को नहीं समझा, वह किसी रोग से क्यों भयभीत होगा? ऐसे लोग केवल इस दृष्टि से जीते हैं कि वे जिंदा है।
जन्म लेने से मृत्यु तक सभी व्यक्तियों को अनेक प्रकार के उत्तरदायित्वों को पूरा करना पड़ता है। यह तभी सम्भव है जब व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ हो। अस्वस्थ व्यक्ति अपने किसी भी उत्तरदायित्व को पूरा करने के स्थान पर स्वयं ही परिवार पर बोझ बन जाता है।
विद्वानों का विचार है कि रोग व्यक्ति के लिये अभिशाप है और रोग से पीड़ित रोगी राष्ट्र के लिये अभिशाप होता है। देश, समाज तथा परिवार के स्तर का आकलन वहां रहने वालों के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर किया जाता है।
जहां अधिक व्यक्ति रोगी हो, उसका स्तर कम करके आंका जाता है। जो रोगी स्वयं को ठीक प्रकार से नहीं संभाल पाता, वह समाज तथा देश की स्थितियों को सुधारने में किस प्रकार से योगदान दे सकता है?
अगर कोई महामारी के फैलने से रोगी होता है अथवा किसी प्राकृतिक आपदा से रोगी है तो बात अलग है किन्तु यदि वह अपने गलत आचार-विचार और व्यवहार के कारण से रोगी है तो स्थिति को सोचनीय माना जाना चाहिए।
वर्तमान में अनेक प्रकार के व्यसनों ने व्यक्ति के स्वास्थ्य में ऐसी सेंध लगायी है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता। व्यसनों को समाप्त करने के लिये चाहे कितने बड़े-बड़े दावे किये जाये, वे सब व्यर्थ हैं।
हर साल देश में विभिन्न व्यसनों से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है। परिवार के बजट का काफी बढ़ा हिस्सा इन रोगियों को स्वस्थ करने में व्यय हो जाता है। यह स्थिति हम सब के लिये चिंता का विषय हो सकती है।
व्यसनों से व्यक्ति किस प्रकार से तथा कितनी संख्या में ग्रसित हो रहे हैं, यह व्यसन उत्पादक वस्तुओं के बढ़ते बाजार से स्पष्ट हो जाता है। ऐसी स्थिति में समझदार लोगों का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है। वे अपने आपको स्वस्थ रखें, साथ ही अपने परिवार तथा अन्य लोगों को भी स्वस्थ रखने में अपना योगदान दें। कंधे से कंधा मिलाकर चलने से सफलता अवश्य मिलती है। सभी मिलकर प्रयास करें तो रोगों को रोका जा सकता है।
भौतिक स्तर पर रोगों का कारण व्यक्ति की गलत दिनचर्या है लेकिन वास्तव में रोगों का कारण अंतर्मन है व्यक्ति यदि अंतर मन की आवाज़ सुने जीवन में मिलने वाले शब्द को याद रखें और उस चमक को पहले ही सीख ले तो रोग विदा हो जाता है।
सिद्ध योग के जरिए रोगों से बचा जा सकता है अपनी आंतरिक शक्ति को गुरु सियाग मंत्र से जागृत किया जा सकता है 15 मिनट में स्थित कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है और जागृत कुंडली भाग रोगों का निदान करती है।
अतुल विनोद- 72230-27059
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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