Published By:धर्म पुराण डेस्क

दीपावली क्यों मनाते हैं।

दीपावली के दिन लोग बही-खाता मिलाते हैं। पुराना 'एकाउंट' बन्द करते हैं। नई 'बैलेंस शीट' बनाते हैं। यह कार्य लौकिक है। बुद्धिमान लोग, सज्जन पुरुष एवं तत्त्वदर्शी साधु इस दिन अलौकिक कार्य करते हैं। इस दिन एक दूसरे के झगड़े, दुश्मनी, बुरा चिन्तन एवं अपवित्र कार्यों का 'पुराना अकाउंट' क्लोज करना चाहिए तथा सबको क्षमा करने का सबसे प्रेम करने का, मानव मात्र के प्रति परोपकार, सेवा करने का 'नया अकाउंट' खोलना चाहिए। 

ईर्ष्यालुओं को क्षमा कर दो। माफ करना बड़े बहादुर व श्रेष्ठ व्यक्ति का कार्य है। क्षमा करना तथा क्षमा करके भूल जाना - यह साधु का कार्य है। साधु और आम इंसान में यही फर्क है। इंसान क्षमा करके याद रखता है और साधु भूल जाता है। मन के मैल को साफ करके हृदय में प्राणी मात्र के प्रति शुभचिंतन की दिव्य ज्योति को प्रज्वलित करना ही संतों की दीपावली है। तभी श्रीमद् भगवद्गीता के एक श्लोक में ऐसी ही रहस्यमय बात कही गई है।

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥

संसार के सभी प्राणियों के लिए जो घोर अंधकारमय रात्रि है, योगी पुरुष तत्त्वज्ञानी लोग उस रात्रि में ही ज्ञान का दीपक जलाकर परम तत्व को प्राप्त करते हैं।

जो लोग शास्त्री हैं, तांत्रिक हैं, साधना क्षेत्र में उतरे हुए हैं, उनके लिये, साधना में सिद्धि चाहने वाले सज्जनों के लिए दीपावली का अलग महत्व है। मरुस्थलादि प्रांतों में पूर्णिमांत मास होते हैं और गुजरात, सौराष्ट्रादि प्रांतों में तथा शास्त्रों में अमांत मास होते हैं। इस हिसाब से पूर्णिमांत मासों में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली होती है और अमान्त मासों में आश्विन कृष्ण अमावस्या को दीपावली होती है। अतः शास्त्रों में कई स्थानों में 'अश्वयुग दर्श' शब्द का उल्लेख दीपावली के लिए प्रयुक्त है।


 

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