 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मां दुर्गा को अनेकों नाम से पुकारने वाले भक्त जब उनका पूजन करते हैं तो उनका ध्येय शक्ति का पूजन ही होता है. भगवती और शक्ति एक-दूसरे की पूरक हैं तथा भगवती के पूजन का अर्थ भी परम शक्ति की सत्ता को स्वीकार करना ही है.
शक्ति प्राणी का कर्म तत्व है. कर्म का अपना कोई आधार नहीं होता. कर्म का सीधा संबंध प्राणी की ऊर्जा से होता है. अर्थात् कर्म करने के लिए उसे ऊर्जा खर्च करनी होती है. शक्ति जीवन का आधार है तथा उसकी आराधना करके मनुष्य जीवन में आगे बढ़ना चाहता है.
देवी भगवती की आराधना करने वाले हमेशा यही प्रार्थना करते हैं कि हे मां, मुझे शक्ति दो ताकि मैं अमुक कार्य पूर्ण कर पाऊं. शक्ति सिर्फ भक्ति ही नहीं है, बल्कि इसे हम अपने आसपास देखे और महसूस कर सकते हैं.
मनुस्मृति में लिखा है कि जहां नारी की पूजा होती है। वहां देवताओं का वास होता है. नारी शक्ति को कोई भी व्यक्ति अस्वीकार तथा तिरस्कार भी नहीं कर सकता. देवी भागवत में उनके विराट स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है- 'उनके विराट स्वरूप के प्रदर्शन के समय आकाश उनका मस्तक, विश्व उनका हृदय, पृथ्वी जंघा, वेद वाणी और वायु प्राण थी.
चन्द्रमा एवं सूर्य उनके नेत्र थे, कान दिशाएं थे, नागि पाताल, यक्ष ज्योतिश्चक्र, मुख जनलोक तथा पलकें दिन- रात थीं. ऐसा अद्भुत स्वरूप तो देवी का ही हो सकता है जो विश्व के कण-कण में व्याप्त है.
शक्तिमय विश्व में रहते हुए नास्तिक-से-नास्तिक व्यक्ति भी इस बात को मानता है कि विश्व में कोई ऐसी अदृश्य शक्ति अवश्य है जिसके सहारे यह समूचा ब्रह्मांड चल रहा है. नास्तिक लोग इस अदृश्य शक्ति को प्रकृति कह देते हैं.
वास्तव में, यह शक्ति ही विश्व को जन्म देती है, उसका पालन करती है और विनाश भी इसी शक्ति के कारण होता है. ब्रह्मा को सृष्टि का जन्म देने वाला, विष्णु को पालन करने वाला तथा रुद्र को संहार करने वाला कहा जाता है.
भले ही जन्म, पालन और संहार के लिए तीन देव हैं, मगर ये तीनों देव भी अपनी-अपनी शक्ति के साथ ही जाने और माने जाते हैं. ब्रह्मा के साथ महासरस्वती, विष्णु के साथ महालक्ष्मी और रूद्र के साथ महाकाली का नाम शक्ति के रूप में जुड़ा है. शक्ति के रूप में देवी की उपासना का स्पष्ट वर्णन हमें मार्कण्डेय पुराण तथा हरिवंश पुराण में मिलता है.
मार्कण्डेयपुराण के अनुसार इस आद्याशक्ति का मुख भगवान शंकर के तेज से, केश यमराज के तेज से, भुजाएं विष्णु के तेज से, पैर ब्रह्मा के तेज से तथा अंगुलियां सूर्य के तेज़ से बनीं. इस प्रकार, देवी में संपूर्ण देवताओं की शक्ति निहित है. मार्कण्डेय पुराण का यह कथन शक्ति के महान एवं विराट व्यक्तित्व को स्पष्ट करता है.
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों एवं विद्वान लेखकों द्वारा लिखित पुस्तकों का अवलोकन करें तो देवी भगवती के विभिन्न नामों, उसके पूजन एवं उससे प्राप्त अभीष्ट फल का विस्तृत उल्लेख मिलता है. महाभारत में दुर्गा के 21 नाम बताये गये हैं.
वराहपुराण में देवी के 9 रूपों की चर्चा की गयी है. दुर्गा सप्तशती में देवी के 108 नाम बताये गये हैं. महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को देवी भगवती की आराधना करने की सलाह दी थी. दुर्गा सप्तशती में देवी की मूर्तियों के स्वरूपों की संख्या 9 कही गयी है.
देवी भागवत में भी देवी के 9 रूपों की ही चर्चा है जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है. विश्वभर में देवी को विभिन्न नामों से पूजा जाता है. मिस्र में आहसिस सैथर और सेखेथ सैयर, यूनान में दिमितारे, जापान में चनेष्टी, तिब्बत में लामो, स्कॉटलैंड में फेइललिक तथा बेबीलोन में निनसाल आदि नामों से देवी को पुकारा जाता है.
महालक्ष्मी एवं महाकाली, महासरस्वती का विवेचन करें तो एक हिंसक शक्ति की प्रतीक है, दूसरी धन शक्ति की और तीसरी विवेक शक्ति की. यूं तो देवी के पूजन का सिलसिला कभी भी रुकने वाला नहीं है, मगर देवी पूजन का विशेष उत्सव वर्ष में दो बार मनाया जाता है.
प्रथम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर रामनवमी तक जिसे राम नवरात्र कहते हैं और द्वितीय, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर विजयादशमी तक रहता है जिसे दुर्गा नवरात्रि कहते हैं.
शक्ति के मर्म को मानव अपनी अल्प बुद्धि से नहीं जान सकता. जहां व्यक्ति प्रश्नों का उत्तर दे पाने में असमर्थ हो वहीं से शक्ति की अवधारणा शुरू होती है. देवी जीव की शक्ति है. ईश्वर की ध्येयता शक्ति है. देवों के देव की स्फूर्ति है. शक्ति को सिर्फ साकार भक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता. शक्ति का अर्थ समझने का प्रयत्न करें तो अहसास होता है कि शक्ति तो हमारे चारों ओर किसी-न-किसी रूप में उपस्थित है. देवी भगवती की आराधना का भाव यही है.
वीणा मेहता
 
 
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