 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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एक बार काशी के एक विद्वान लंदन की यात्रा पर गए हुए थे, सफेद कुर्ता- धोती और पैर में चप्पल पहने तथा कंधे पर झोला लटकाए वे वहां की सड़क पर चल रहे थे.
जब वे एक गली के मोड़ पर पहुंचे तो उन्हें देख कर कुछ बच्चों को शरारत करने की सूझी कई बच्चे उनके पास आकर अंग्रेजी में अपशब्द कहने और चिढ़ाने लगे. एक-दो बच्चों ने उन पर कंकड़ भी फेंका, लेकिन विद्वान महाशय चलते जा रहे थे. बच्चों ने सोचा कि उन्हें अंग्रेजी तो आती नहीं होगी.
कुछ दूर चलने पर भी जब बच्चों की शरारत नहीं थमी तो वे खड़े हो गये और उन्हीं की भाषा में उन्होंने भारतीय संस्कृति के बारे में समझाया. उनकी जुबान से धाराप्रवाह अंग्रेजी सुनकर बच्चे चकित रह गये. अंत में, विद्वान महोदय ने उन बच्चों से कहा- "इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है. तुम्हें भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है, इसलिए तुम लोग ऐसा व्यवहार करते हो. आओ मेरे साथ, मैं तुम लोगों को कॉफी पिलाता हूं.'
कॉफी पीने के बाद सभी बच्चे उनसे क्षमा मांगते हुए कहने लगे- “भारतीय इतने सहिष्णु और विद्वान होते हैं, हमें इसकी जानकारी थी ही नहीं.'
थोड़ी दूरी पर एक दूसरा भारतीय पूरा तमाशा देख रहा था. वह विद्वान आदमी के पास आकर हिंदी में बोला- "इन बच्चों के इतना परेशान करने पर भी आपको गुस्सा नहीं आया और इन्हें कुछ कहने की बजाय आपने कॉफी पिलाई?"
विद्वान ने भी हिंदी में कहा- “देखो भाई! इन बच्चों का इसमें कोई दोष नहीं है. भारत के बारे में जो इन्हें बताया गया है, ये उसी तरह का व्यवहार करते हैं. इन्हें यह बात मालूम नहीं है कि भारतीय जैसा सहिष्णु दुनिया में कोई और नहीं होता.
यदि मैं इन पर गुस्सा करता या उन्हीं की तरह व्यवहार करता तो उनकी सोच और पुख्ता होती. इस समय अपने देश की संस्कृति, सभ्यता और विद्वत्ता को यदि इन बच्चों तक पहुंचाना है तो गुस्सा पीकर इनसे विनम्र बनो, कठोर नहीं. इसलिए, मैंने उन्हें कॉफी पिलाई. "
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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