Published By:धर्म पुराण डेस्क

खुशबू का साक्षात् सम्बन्ध नासिका अर्थात प्राण-तत्त्व से क्यों है? 

खुशबू सुगंध का पर्यायवाची है, यश, कीर्ति एवं वैभव को विस्तारित करने वाला है। इसको सौरभ और और महक के नाम से भी जाना जाता है। एक कवि ने कहा है- "व्याकुल उस मधु सौरभ से मलयानिल धीरे-धीरे"। खुशबू को आंसू भी कहा गया है ; क्योंकि आंसू भी मन के भाव को अभिव्यक्त करने का एक साधन है। 

आंसू के माध्यम से व्यक्ति अपने दुःख को संयोजित कर अपनी संवेदना को प्रशस्त कर अक्षय कीर्ति का संभागी बनता है। क्योंकि आंसू भी एक करुणा का ही रूप है। वह अपने भाव को सामाजिक समरसता प्रदान करता है। 

खुशबु को केसर भी कहा जाता है। केसर जहाँ सुगंध का वाचक है, वहां वह रंग में प्रेम, सात्विकता और बलिदान का सूचक है। इसके साथ-साथ यह आध्यात्मिकता में परम-प्रिय ईश्वर के संयोग का भी प्रतीक है। 

आम को भी खुशबू का प्रतीक माना गया है। आम का वृक्ष धार्मिक दृष्टि से जहाँ पवित्र माना गया है; वहां इसके पत्तों का बंदनवार में प्रयोग किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान में इसके प्रयोग के पीछे प्रमुख कारण यह है कि इस वृक्ष पर कभी भी पतझड़ नहीं आता।

यह प्रकृति का अद्भुत उपहार है। सदैव खिलने वाला यह वृक्ष प्रकृति की खुशबू का श्रृंगार है। छंद - रचना में सौरभ एक वर्ण-वृत्त है; जिसमें वेदों की अनेक रचनाओं का विस्तार हुआ है। वस्तुत: सौरभ एक विविध आयामी शब्द - योजना है। यह प्रकृति के सार-तत्त्व को प्रस्तुत करता है। सौरभ से अपने मन की खुशबु को विस्तारित किया जा सकता है। 

खुशबू का साक्षात् सम्बन्ध नासिका अर्थात प्राण-तत्त्व से है। इसी प्राण-योजना को महाप्राण से संयोजित कर खुशबू - युक्त बनाया जा सकता है। खुशबू हवा के साथ फ़ैल कर सब जगह छा जाती है, वह अपने कुल - गौरव के साथ-साथ सभी को आल्हादित एवं प्रसन्न - चित्त करती है। खुशबू सभी को भाती है। वास्तव में बस खुशबू मात्र खुशबू ही है।

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