Published By:दिनेश मालवीय

मंदिर जाना क्यों जरूरी है? हर व्यक्ति को नियमित रूप से मंदिर क्यों जाना चाहिए..

मंदिर जाना क्यों जरूरी है? हर व्यक्ति को नियमित रूप से मंदिर क्यों जाना चाहिए।। दिनेश मालवीय साथियो,  बहुत लम्बे समय से कुछ ऐसे प्रयास चल रहे हैं कि, हिन्दुओं को उनकी संस्कृति, धर्म और संस्कारों से कैसे दूर किया जाए। यह सिलसिला पिछली शाताब्दी में अंग्रेज़ी शासनकाल में ही शुरू कर दिया गया था। लेकिन पिछले कुछ दशकों से यह काम एक मुहिम  की तरह किया जा रहा है। आज हम आपको एक ऐसी ही साजिश के बारे में बताने जा रहे हैं। 

क्या आप जानते हैं कि मंदिर जाना क्यों जरूरी है ? हर व्यक्ति को नियमित रूप से मंदिर क्यों जाना चाहिए । यह आने वाली पीढ़ियों की अप-संस्कृति से किस प्रकार सुरक्षा करेगा। डिप्रेशन दूर करने का सबसे अच्छा उपाय,  मंदिर में किन बातों का ख्याल रखें। हिन्दू समाज में आजकल लोगों में नियमित रूप से मंदिर जाने का चलन कम होता जा रहा है। लोग घर में ही छोटा-सा मंदिर स्थापित कर वहीं पूजा-पाठ और धार्मिक दिनचर्या करते संपन्न करते हैं। 

अनेक जगहों पर तो हालत यह हो गयी है कि, मंदिरों में आरती के समय शंख और घंटाल बजाने तक के लिए लोग नहीं मिलते। बड़ी-बड़ी कॉलोनियों तक में स्थापित  मंदिरों में इन्हें बजाने के लिए मशीने लगाई जा रही हैं। पुजारीजी बेचारे अकेले आरती करते मिलते हैं। कभी- कभार कोई भूला-भटका भक्त पहुँच जाए तो और बात है, वरना उन्हे सबकुछ अकेले ही करना पड़ता है। इसके लिए व्यस्तता का बहाना बनाया जाता है, लेकिन यह सच नहीं है। हमारे पास बहुत-सी फालतू बातों के लिए काफी समय रहता है। इस विषय पर ज़रा सोचकर देखें तो हम पायेंगे कि, कारण सिर्फ व्यस्तता नहीं, वरना हमारी उदासीनता है। 

इस प्रवृत्ति के बढ़ने में उन लोगों का बहुत हाथ है, जो मंदिर जाने को व्यर्थ मानते हैं। अपनी बात को सही ठहराने के लिए वे कबीर आदि महापुरुषों की उन बातों को सेलेक्टिवेली उद्धृत करते हैं, जिनमें मंदिर जाने की व्यर्थता बतलाई गयी है। लेकिन समझने की बात यह है कि, कबीर या जिन महापुरुषों ने यह बात कही, वे चेतना की उस अवस्था को पहुँच चुके थे, जहाँ उन्हें संसार के कण-कण में ईश्वर के दर्शन होते थे। उनमें और हम में ज़मीन-आसमान का फर्क है। फिर उनके नासमझ अनुयाइयों ने इसे बिलावजह बहुत प्रचारित कर दिया। 

संत कबीर ने तो यह भी कहा कि पुस्तकों को पानी में फेंक दो, तो क्या हमें यही करना चाहिए। उनकी बात का निहितार्थ समझना ज़रूरी है। उनका कहना यह है कि, आत्मानुभव होना चाहिए। सिर्फ पुस्तकों से चिपककर रह जाना उचित नहीं है। खैर, यह अलग विषय है, जिस पर फिर कभी बात होगी। हम आपको मंदिर जाने के फायदों के बारे में बताने जा रहे हैं। मंदिर जाने के अनगिनत फायदे हैं। मंदिर का वातावरण इतना पवित्र और शुद्ध रहता है कि इसमें प्रवेश करते ही मन की चंचलता रुकने लगती है। चेतना ऊपर उठने लगती है। मंदिर में प्रतिष्ठित मूर्तियों में हज़ारों लोगों की आस्था घनीभूत होती है। किसी ने एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है। इसके अनुसार, जैसे हमारे चारों तरह बहुत तरह की आवाज़ें वायुमंडल  में लगातार मौजूद रहती हैं।लेकिन हमें उन्हें नहीं सुन पाते। 

रेडियो स्टेशन में लगे ट्रांसमिटरउन आवाजों को केच कर उन्हें हम तक पहुंचाते हैं। लेकिन इन्हें सुनने के लिए हमें रेडियो यंत्र की आवश्यकता होती है। इसी तरह मंदिर एक ऐसा केंद्र होता है, जो वातावरण की आध्यामिक शक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए मंदिर हमेशा आध्यात्मिक रश्मियों से तरंगित रहता है। उसमें प्रवेश करते ही हमारा मन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। मंदिरों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, लेकिन सामाजिक दृष्टि से भी मंदिर जाने का बहुत लाभ मिलता है। मंदिर में जाने वाले लोगों के साथ  सोशल इंटरेक्शन भी होता है, जिसकी आज बहुत ज़रुरत है। 

लोगों में परस्पर सहयोग और एकता की भावना भी मजबूत होती है। धर्म के काम आगे बढ़ने में मदद मिलती है। साथ ही मंदिर आदि के विकास में लगे लोगों का उत्साहवर्धन होता है। वहां होने वाले विभिन्न धार्मिक आयोजनों से भी हमें कुछ सीकहने को मिलता है। डिप्रेशन आज की सबसे बड़ी बीमारी है।इसे दूर करने के लिए मंदिर जाना बहुत लाभकारी है। मंदिर जाने में भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। हमें सुबह या शाम को कुछ समय निकालकर मंदिर अवश्य जाना चाहिए। मंदिर जाना ही पर्याप्त नहीं है। मंदिर में दर्शन के समय कुछ ऐसी बातें हैं, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। 

दर्शन करते समय भगवान् की प्रतिमा को कुछ देर निरंतर देखते रहकर उसे आँखों में बसाने का प्रयास करना चाहिए। उनका रोज़ाना सुबह-शाम श्रृगार होता है। इसके लिए पुजारी बहुत परिश्रम करते हैं। उनके हर एक श्रृंगार को निहारना चाहिए। इससे आपको बहुत शांति का अनुभव होगा। बुद्धि को भगवान् में ही लगाने करने का प्रयास करें। मंदिर में मूर्ति के एकदम सामने खड़े होने की मनाही है। थोड़ा-सा दायें खड़े होना चाहिए। उनके सामने थोड़ी नीची नज़र रखें, आखिर आप जगत के स्वामी के सामने खड़े हैं। भगवान् को कुछ अर्पण करने का कोई पक्का नियम नहीं है। वे तो भाव के भूखे हैं। 

आप अपनी शक्ति और क्षमता के अनुसार जो भी बन पड़े उन्हें अर्पित कर सकते हैं। भगवान् ने गीता में कहा है कि भक्त मुझे जो कुछ भी श्रद्धा से अर्पण करता है, मैं उसे प्रेम के साथ ग्रहण करता हूँ। उन्हें अर्पित की हुई हर चीज़ प्रसाद बन जाती है। बहरहाल, कुछ देवताओं को अर्पित की जाने वाली चीजों के सम्बन्ध में कुछ नियम निर्धारित हैं, जिनका पालन करना चाहिए। मसलन, किसी देवता को कोई फल य कोई फूल नहीं चढ़ाया जाता या उनकी पूरी परिक्रमा नहीं की जाती। इन सबके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण हैं, जिन्हें पुजारीजी या किसी अन्य ज्ञानी व्यक्ति से जाना जा सकता है। 

प्रसाद को अधिक  से अधिक लोगों को वितरित करना चाहिए। मंदिर में किसी प्रकार का शोर नहीं करना चाहिए। दूसरे दर्शनार्थियों की सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए। अनेक मंदिरों में इतनी जगह नहीं होती कि, बहुत से लोग एक साथ दर्शन कर सकें। इसलिए प्रतिमा के सामने अधिक नहीं रुककर सिर्फ दर्शन कर आगे बढ़ जाना चाहिए। इस बात को समझ लीलिए कि, आपका मंदिर में उपस्थित होना ही काफी है। 

भगवान् सर्वज्ञ हैं। उनके सामने बहुत देर तक खड़े रहने से आपको कोई विशेष महत्त्व नहीं मिल जाएगा। अपनी झूठी पहचानों को भूलकर ही मंदिर में जाएँ। आप राजनेता हों या अधिकारी या  बड़े कुल के, हर चीज भूलकर सिर्फ भक्त के रूप में भगवान् के सामने खड़े हों। किसी प्रकार का अहंकार नहीं रखें। मंदिर में किसी विशेष सुविधा या व्यवहार की अपेक्षा आपकी भक्ति के फल में बाधक होगी। सारी पहचान अपने जूतों के साथ ही बाहर उतारकर मंदिर में प्रवेश करें। इन छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखकर मंदिर नियमित रूप से जाने पर आप अपने जीवन और सोच में बहुत सकारात्मक परिवर्तन महसूस करेंगे। लिहाजा बना लीजिये मंदिर जाने का नियम। इतना ही नहीं, बच्चों में भी यह संस्कार डालिए, जो उनके और समाज के लिए हितकर होगा।

 

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