 Published By:बजरंग लाल शर्मा
 Published By:बजरंग लाल शर्मा
					 
					
                    
आत्मा क्या है ?
"कौन स्वरूप है आत्मा, पर आत्मा कहां क्यों भिन्न।
सुध ठोर न स्वरूप की, ए संशय भान्यो न किन।"
आत्मा का स्वरूप क्या है एवं पर-आत्मा (जहाँ से आत्मा निकलती है अर्थात आत्मा की उत्पत्ति का स्थान) को आत्मा से भिन्न क्यों कहा है? आत्मा के मूल स्वरूप तथा मूल स्थान (परमधाम) की सुध किसी को नहीं है। इस संशयो का निवारण आज तक किसी ने नहीं किया।
परमधाम में रहने वाली आत्मा को ब्रह्म आत्मा अथवा सुहागन सुरता कहा गया है परमधाम के स्वामी को शास्त्रो में पूर्ण ब्रह्म परमात्मा, अक्षरातीत तथा उत्तम पुरुष कहा है। कबीर जी ने इनको नि:अक्षर तथा कुरान में इनको इल्लील्लाह कहा गया है। पूर्णब्रह्म परमात्मा ही सुहागन सुरताओं के अखंड प्रियतम पति हैं। परमधाम में सबके अपने अखंड शरीर हैं, जो माया के तीन गुणों के द्वारा निर्मित नहीं है।
परमधाम में जन्म मृत्यु नहीं है क्योंकि वह माया रहित तथा काल रहित है। वहां कुछ भी नया तथा पुराना नहीं होता है। इस नश्वर जगत की रचना पूर्ण ब्रह्म परमात्मा नहीं करता है क्योंकि वह अकर्ता है। परम धाम की आत्माएं अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा ही इस नश्वर स्वप्न के संसार को देखती हैं।
आत्मा की उत्पत्ति शरीर (शुद्ध साकार) से होती है तथा आत्मा शरीर का सूक्ष्म रूप है। अखंड दिव्य शरीर से उत्पन्न सूक्ष्म शरीर को ही आत्मा कहा जाता है। माया के तीन गुणों से निर्मित शरीर से उत्पन्न सूक्ष्म शरीर को आत्मा नहीं बल्कि मन कहा जाता है।
शरीर से उत्पन्न सूक्ष्म शरीर को सुरता भी कहा गया है इसलिए लोग आत्मा तथा मन दोनों के लिए सुरता का प्रयोग कर देते हैं जिससे भ्रम उत्पन्न हो जाता है। नश्वर शरीर से उत्पन्न सूक्ष्म शरीर को आत्मा या सुरता नहीं अपितु मन ही कहना चाहिए। अत: यह स्पष्ट है कि आत्मा निराकार है परंतु परमात्मा शुद्ध साकार एवं अखंड शरीर वाला है।
जिस प्रकार मनुष्य का शरीर दिखाई देने के कारण साकार है। उसी प्रकार उसका सूक्ष्म शरीर मन है तथा दिखाई नहीं देने के कारण निराकार है। सूक्ष्म शरीर का स्वरूप हमेशा निराकार होता है। ध्यान में मन शरीर को छोड़कर सूक्ष्म रूप में बाहर निकलता है और वह दिखाई नहीं देता है इसलिए वह निराकार होता है, परंतु मन के स्वामी का शरीर तो साकार ही होता है।
परमात्मा सत्य है उसका शरीर अखंड है उसके सूक्ष्म शरीर को आत्मा कहते हैं। सत्य अपने अखंड शरीर को लेकर असत्य संसार में नहीं आ सकता है अगर वह आएगा तो असत्य समाप्त हो जाएगा इसलिए असत्य संसार में परमात्मा का सूक्ष्म रूप ही आता है। जिसे आत्मा कहा जाता है।
बजरंग लाल शर्मा
 
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