आप इनके बारे में जानेंगे तो आप को न सिर्फ हैरत होगी बल्कि भारत की ऐतिहासिक और भव्य विरासत को लेकर गर्व भी महसूस होगा|
कैलाश मंदिर: आज भी इंजीनियरों को चौंकाती है, औरंगजेब कई जतन के बाद भी नहीं कर सका नुकसान|
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में न तो कोई पुजारी है और न ही यहाँ किसी प्रकार की पूजा-पाठ की कोई जानकारी मिलती है। यह मंदिर मात्र एक चट्टान को काटकर और तराशकर बनाया गया है।
हम बात कर रहे हैं एलोरा के कैलाश मंदिर की जिसे बनाने में मात्र 18 वर्षों का समय लगा। लेकिन जिस तरीके से यह मंदिर बना है, ऐसे में अनुमान यह लगाया जाता है कि इसके निर्माण में लगभग 100-150 सालों का समय लगना चाहिए।
सीढ़ियों पर चलने से संगीत की ध्वनि, आस्था और रहस्य का अद्भुत मेल: कुंभकोणम का 800 साल पुराना ऐरावतेश्वर मंदिर 800 वर्षों पुराने कुंभकोणम के इस मंदिर के न तो निर्माण को समझा जा सका है और न ही संगीत की ध्वनि उत्पन्न करने वाली उन सीढ़ियों के पीछे के विज्ञान को।
ऐरावतेश्वर बस एक ऐसे मंदिर के रूप में जाना जाता है जहाँ अद्भुत शांति की अनुभूति होती है।
तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर: नींव नहीं फिर भी सब कुछ भव्य-विशाल, 200 फुट की ऊँचाई और 81000 किलो का पत्थर| बृहदेश्वर मंदिर की वास्तुकला न केवल विज्ञान और ज्यामिति के नियमों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, बल्कि इसकी संरचना कई रहस्य भी उत्पन्न करती है। मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तु शैली के आधार पर हुआ है।
कोणार्क सूर्य मन्दिर भारत में उड़ीसा राज्य में स्थित है। यह जगन्नाथपुरी से 35 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसे सन् 1949 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की मान्यता दी थी।
कैसा है यह मंदिर: हिन्दू मान्यता के अनुसार, सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए मौजूद हैं। साथ ही 7 घोड़े भी हैं जो रथ को खींचते हैं। यह 7 घोड़े 7 दिन के प्रतीक हैं। वहीं, 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों के प्रतीक हैं।
कई लोग तो यह भी कहते हैं कि यह 12 पहिए साल के 12 वर्षों के प्रतीक हैं। इनमें 8 ताड़ियां भी मौजूद हैं जो दिन के 8 प्रहर का प्रतीक है। यह मंदिर सूर्य देवता के रथ के आकार का ही बनाया गया है। कोर्णाक मंदिर में भी घोड़े और पहिए हैं। यह मंदिर बेहद खूबसूरत और भव्य है।
अपनी आकर्षक, अद्भुत बनावट और हद से भी ज़्यादा खूबसूरत नक्काशी के लिए पूरी दुनिया में फेमस रानी की वाव भारत के लिए गौरवान्वित धरोहर है। यह भारत के गुजरात राज्य के पाटन शहर में स्थित है।
रानी की वाव भारत की सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहरों में से एक धरोहर है। रानी की वाव अपने आप में ही उत्कृष्ट और अनूठी संरचना है जो कि धरती के गर्भ में समाहित पानी के स्त्रोतों से थोड़ी सी अलग दिखती है।
रानी की वाव बहुत बड़ा जल का स्त्रोत हुआ करता था, इसकी बनावट देख कर मन प्रफुल्लित और चेहरा हैरान हो जाता है।
रानी की वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का सबसे अनोखा वाव है। इसकी दीवारों और स्तंभों पर बहुत सी कलाकृतियां और मूर्तियों की शानदार नक्काशी की गई है।
इनमें से अधिकांश नक्काशियां भगवान राम, वामन, नरसिम्हा, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
हम्पी के खंडहरों में पहाड़ियों और घाटियों के चारों ओर फैले 500 से अधिक स्मारक है। इनमें आकर्षक मंदिर, महलों के खंडहर, शाही मंडप, गढ़, ऐतिहासिक खजाने, जलीय संरचनाओं के पुरातात्विक अवशेष और प्राचीन बाजार शामिल हैं।
मोढेरा सूर्य मंदिर गुजरात के पाटन नामक स्थान से 30 किलोमीटर दक्षिण की ओर मोढेरा गांव में निर्मित है। यह सूर्य मन्दिर विलक्षण स्थापत्य और शिल्पकला का बेजोड़ उदाहरण है। इस मंदिर के निर्माण में जोड़ लगाने के लिए कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं किया गया है।
ईरानी शैली में बने इस मंदिर को सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में दो हिस्सों में बनवाया था। जिसमें पहला हिस्सा गर्भगृह का और दूसरा सभामंडप का है। गर्भगृह में अंदर की लंबाई 51 फुट, 9 इंच और चौड़ाई 25 फुट, 8 इंच है।
मंदिर के सभामंडप में कुल 52 स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों के अलावा रामायण और महाभारत के प्रसंगों को बेहतरीन कारीगरी के साथ दिखाया गया है। इन स्तंभों को नीचे की ओर देखने पर वह अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने से वह गोल नजर आते हैं।
मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार किया गया था कि सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह को रोशन करे। सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड है जो सूर्यकुंड या रामकुंड के नाम से प्रसिद्ध है।
पट्टदकल एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, जो कर्नाटक के बीजापुर जिले में मलयप्रभा नदी के तट पर, बादामी से 12 मील की दूरी पर स्थित है। चालुक्य साम्राज्य के दौरान पट्टदकल एक ख्याति प्राप्त महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था।
अद्भुत शिल्पकला की वजह से इस शहर को 'विश्व विरासत स्थलों' की सूची में रखा गया है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। अपने खूबसूरत मंदिरों के लिए ही यह शहर 'मंदिरों का शहर' कहलाता है। यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु तथा पर्यटक आते हैं।
कहने को तो वाराणसी या बनारस में कई मंदिर हैं, लेकिन रत्नेश्वर मंदिर जैसा कोई और मंदिर नहीं है। इसकी एक खासियत इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। दरअसल, अन्य मंदिरों के अलावा यह मंदिर तिरछा खड़ा हुआ है। जी हां, इस प्राचीन मंदिर को देखकर इटली के पीसा टावर की याद आ जाती है।
आपको शायद अब तक इस मंदिर के बारे में पता नहीं होगा, लेकिन यह एक ऐसी इमारत है, जो पीसा से भी ज्यादा झुकी हुई और लंबी है। पीसा टावर लगभग 4 डिग्री तक झुका हुआ है, लेकिन वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के पास स्थित रत्नेश्वर मंदिर लगभग 9 डिग्री तक झुका हुआ है।
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 74 मीटर है, जो पीसा से 20 मीटर ज्यादा है। ऐतिहासिक रत्नेश्वर मंदिर सदियों पुराना है।
दोस्तों यह तो चंद उदाहरण है जो दुनिया के सात अजूबों से कहीं आगे हैं| बस यह सात अजूबों में शामिल नहीं है क्योंकि हमें जानने की परवाह नहीं है|
दुनिया के अन्य देशों के लोग अपनी सभ्यता वास्तुशिल्प और चमत्कारिक संरचनाओं को स्थापित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं लेकिन हम भारतीय अपने भव्य इतिहास और विरासत को जानने के लिए ना तो उत्सुक हैं ना ही इनसे गौरवान्वित होते हैं|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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