दुर्भावनापूर्ण व्यवहार ठीक नहीं होता क्योंकि यह मानवीय संबंधों को दूषित करता है और एकता, समरसता, और शांति की भावना को नष्ट करता है। आपके भीतर दुर्भावना भरी होने से आपके संबंधों में अस्थिरता, द्वेष, असंतोष, और दुख का वातावरण उत्पन्न होता है। यह संबंधों को तोड़ने और उदासीनता की भावना की भावना पैदा करती है ।
सद्भावना जरूरी है क्योंकि यह हमारे मानवीय संबंधों को मजबूत, स्थायी और सुखद बनाती है। सद्भावना से हम दूसरों के साथ सहानुभूति, प्रेम और समरसता की भावना का अनुभव करते हैं। यह हमें दूसरों की समस्याओं को समझने और उन्हें सुलझाने में मदद करती है ,और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है। सद्भावना मानवीय संबंधों में स्नेह और विश्वास को बढ़ाती है और एक खुशहाल और समृद्ध समाज का निर्माण करती है ।
प्रेम और सद्भावना मानवीय संबंधों के आधार होते हैं। प्रेम एक गहरा और उन्मुख मानवीय भाव है जो हमें दूसरे इंसानों के प्रति आत्मीयता, सम्मान और प्रेम की भावना का अनुभव कराता है। सद्भावना हमें प्रेम की भावना को अपने आसपास के संबंधों में प्रकट करने के लिए प्रेरित करती है और हमें एक उच्च स्तर की संवेदनशीलता और समरसता के साथ अन्य लोगों के दुख और सुख में सहभागी बनाती है। प्रेम और सद्भावना एक स्वस्थ और प्रफुल्लित मानवीय समाज की नींव होते हैं।
भागीरथ पुरोहित
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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