कालसर्प एवं राहु की पूजा में चंदन इत्र ही क्यों?
ऐसी मान्यता है कि राहु का मुख नाग का फन है। नाग/सर्पों को अगरबत्ती का धुआँ, दीपक की अग्नि आदि से भय लगता है। जब हम नाग मंदिरों, शिव मंदिरों में अगरबत्ती, दीपक आदि का उपयोग करते हैं, तो वे इनके धुएँ और गर्माहट से क्रोधित हो जाते हैं और हमें पूजादि का फल प्राप्त नहीं होता। ये भी पढ़ें.. ज्योतिष के विविध आयामों का परिचय नाग/सर्प चंदन वृक्ष से लिपटे हुए इसकी खुशबू से मस्त रहते हैं। इसलिए इन्हें नाग-पूजा के समय केवल चंदन इत्र अथवा चिरायु पोषक तेल चन्दनादि तेल लगाना चाहिए। साथ ही कपूर की खुशबू से नाग भारी प्रसन्न होते हैं। मलयागिरि चंदन की लकड़ी और माला तो राहु को विशेष प्रिय है। ये भी पढ़ें.. ज्योतिष, ग्रह, नक्षत्र, राशि आखिर है क्या? यदि राहु-केतु व कालसर्प दोष/योग से पीड़ित जातक चंदन इत्र और चंदन की लकड़ी का अधिकाधिक उपयोग नियमित रूप से करें तो इन्हें काफी प्रसन्नता महसूस होती है तथा सफलता के द्वार खुलना आरम्भ हो जाते हैं। यह मेरा निजी अनुभव है। माह में 1 बार आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में भगवान् शिव का रुद्राभिषेक अवश्य कराना चाहिए। प्रतिदिन राहुकाल में नाग/सर्पों सहित भगवान् शिव का 2-5 मिनिट ध्यान करना चाहिए। माह में 1-2 बार केले के पत्तों पर भोजन रखकर गरीब या पागल लोगों को खिलाने से पितृदोष शान्त होकर पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। ये भी पढ़ें.. ज्योतिष और आयुर्वेद का है गहरा नाता … औषधि से भी ठीक हो जाते हैं गृह नक्षत्र सिहंस्थ केतु का जातक यदि वैसा वातावरण मिले तो कला में आध्यात्मिक रंग दे सकता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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