हम पूजा-पाठ विधान के अनुसार नहीं करते। जैसे- यदि बैंक में पैसा जमा कराएं और अकाउंट नं. गलत डालें अथवा खाता किसी बैंक में और पैसा दूसरी बैंक में जमा करना चाहें या निकालना चाहें, तो असफलता ही हाथ लगेगी।
सी. एच. कान्ता
हमारे वेद-पुराणों में महर्षियों द्वारा निर्देशित पूजा-पाठ के विधान में पूजा की वस्तुओं और मंत्रों के शुभ ल उच्चारण का प्रमुख स्थान है। पूजन-वस्तुओं के विषय में हम गड़बड़ कर देते हैं। जैसे- पाद्य, अर्घ्य, आचमन और स्नान का जल अलग-अलग विधियों से बनाया जाता है; जब कि हम एक ही पात्र में रखे जल से सभी काम कर लेते हैं।
वस्त्र समर्पण में मंत्र तो पूरा बोला जाता है और मात्र चार-छः अंगुल का कलावा तोड़कर चढ़ा दिया जाता है। पूजन का नैवेद्य भक्तगण मूर्तियों के मुख में पेड़ा-बर्फी आदि चिपका देते हैं जब कि देवता अग्नि मुखी होते हैं। अतः उन्हें मात्र सुगंध ही चाहिए। इसलिए हवन करें अथवा देव मूर्ति के समक्ष वह नैवेद्य रख दें ।
उच्चारण की शुद्धता - अशुद्धता का बड़ा महत्व होता है। प्रायः श, ष और स के उच्चारण में अशुद्धियों से अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे- सर्व (सब) और शर्व भगवान शिव। यह तो वही हुआ कि पेपर तो था गणित का और उत्तर लिख आये विज्ञान का।
अतः श्रद्धालुओं से निवेदन है कि पूजा-विधान से पूर्व पूजा कराने वाले ब्राह्मण से पूजा हेतु संपूर्ण सामान की तैयारी करें और पूजा सम्बन्धी जानकारी एकत्रित कर पूर्ण श्रद्धा भाव एवं प्रार्थना पूर्वक पूजादि करें। विनम्र प्रार्थना सहित पूजा के अच्छे फल अवश्य मिलते हैं क्यों कि प्रार्थना कभी अनसुनी नहीं जाती।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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