 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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इन समस्याओं के लिए किसी एक कारण को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। इन कष्टदायी समस्याओं की बहुत सी वजह हो सकती हैं, जैसे-
लिंगभेद यह देखा जाता है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को यह रोग तुलनात्मक रूप से अधिक होता है। खासतौर पर गर्भावस्था से लेकर बच्चों के लालन-पालन के समय तक|
आयु वर्ग-
यूँ तो इस व्याधि के उपजने की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन 30 से 45 वर्ष की अवस्था में यह अपेक्षाकृत ज्यादा होना पाया जाता है।
शारीरिक रूप-
कमर दर्द ज्यादातर मोटे तथा लम्बे व्यक्तियों को होता है लेकिन यह जरूरी नहीं है, अन्य कद-काठी के व्यक्तियों को भी कमर दर्द की शिकायतें आमतौर पर देखी जाती है।
शारीरिक स्वास्थ्य-
कमजोर और बीमार व्यक्ति के लिए जिस तरह अन्य बीमारियां घेरने के लिए तत्पर रहती हैं, कमर दर्द भी ऐसे ही लोगों को ज्यादा होता है। दरअसल स्वस्थ, चुस्त-दुरुस्त व्यक्ति की मांसपेशियों आदि में पर्याप्त लचीलापन रहता है। उनकी अस्थियां भी मजबूत होती हैं। अतः कमर दर्द की सम्भावना उन्हें बहुत ही कम रहती है।
काम करने का तरीका-
हम चाहे पढ़ रहे हो, लिख रहे हों, भार उठा रहे हों या बैठकर खड़े हो रहे हों, बैठकर अथवा खड़े होकर कोई काम कर रहे हो, सभी में अपने शरीर की मुद्रा कार्य के अनुरूप रखनी पड़ती है। तब स्वाभाविक रूप से शरीर के किसी भी हिस्से को कष्ट नहीं होगा. लेकिन यदि मुद्राओं के ये तरीके अनुचित रखना हमारी आदत में शुमार हो गया है। तब निश्चय ही कुछ अंगों की स्थिति विकृत होगी। यदि रीढ़ में कुछ ऐसा ही होता है तब निश्चय ही कमर दर्द का कारण पैदा हो जाएगा।
कार्य का रूप-
कई तरह के कार्य बहुत से लोगों को करने पड़ते हैं, जिनमें कमर की मांसपेशियां आदि स्वाभाविक स्थिति में नहीं रह पाते; नतीजतन कमर दर्द की समस्या ऐसे लोगों को होने की ज्यादातर संभावना रहती है। जैसे भार उठाने वाले श्रमिक, लम्बे समय तक गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर या वायुयान के पायलट।
तीव्र गति से चलाने वाली गाड़ी, ट्रक, ट्रैक्टर या वायुयान को चलाने वालों की रीढ़ वैसे भी अपेक्षाकृत कमजोर हो जाती है, सम्भवतः गाड़ी आदि के प्रकम्पन से रीढ़ पर बुरा असर पड़ता है।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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