भगवान शिव के अन्त:संदेश (मानसिक निर्देश) के अनुसार भगवान विष्णु मनचाहा रूप धारण कर लेते थे। जैसे उन्होंने जल से धरती को खोजने के लिये वराह, वेदों के उद्धार के लिये हयग्रीव, जल-प्रलय में चराचर, जगत के बीजों को सुरक्षित रखने के लिए मत्स्य का, समुद्र मंथन के समय कच्छप और मोहिनी का और भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नृसिंह (नरसिंह) का रूप धारण किया था।
इस प्रकार भगवान विष्णु आवश्यकतानुसार रूप परिवर्तन की क्षमता रखते हैं। उस प्रकार यद्यपि नागों को सभी प्रकार का रूप धारण करने की शक्ति प्राप्त नहीं थी, फिर भी वे केवल मनुष्य (पुरुष-स्त्री) तथा आवश्यकता पड़ने पर लघु कीट-पतङ्गों का रूप धारण करने की सामर्थ्य रखते थे। जैसे कि तक्षक ने राजा परीक्षित को काटने के लिये पहले ब्राह्मण और बाद में एक लघु कीट का रूप धारण किया था।
जिन नागों को आज हम धरती पर देखते हैं उनमें वह सामर्थ्य न होने के कारण हमें उनके देवत्व तथा उनके रूप परिवर्तन पर विश्वास नहीं हो पाता। जैसे कि आज हम मानवों में सैकड़ों-हजारों वर्षों तक अन्न और जल के बिना तप करने की सामर्थ्य नहीं रही; उसी प्रकार इस धरती पर पाये जाने वाले नागों की भी वह शक्ति नहीं रही, जो किसी समय थी।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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