आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी मणि के बारे में जो बहुत ही चमत्कारिक है। यूं तो अनेक तरह की मणियां होती हैं लेकिन उनमें से नौ मणियों को मुख्य बताया जाता है। पारस मणि को हम सब जानते हैं लेकिन इसके अलावा भी एक और मणि है जिसे बेहद चमत्कारिक माना जाता है।
भीष्मकमणि-
इस मणि के दो मुख्य भेद माने जाते हैं-
1. मोहिनी भीष्मकमणि, 2. कामदेवी भीष्मकमणि
मोहिनी भीष्मकमणि को अमृतमणि तथा मोहिनी भीष्मकमणि भी कहा जाता है। इसका रंग सरसों अथवा तोरई के फूल जैसा केले के नवीन पत्र एवं गुलदाऊदी के फूल जैसा, पीला होता है। इसमें हीरे जैसी चमक पाई जाती है।
कामदेवी भीष्मकमणि काली शहद जैसी, दही तथा फिटकरी के मिश्रण से बने रंग जैसी होती है। यह चिकनी, स्वच्छ, अच्छे घाट की तथा सुंदर रंग एवं शांति वाली होती है।
जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र पर तथा चंद्रमा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु अथवा कुंभ राशि में हो, तब मोहिनी भीष्मकमणि को रुई में लपेटकर, पूर्व दिशा की ओर, पानी में डुबोकर रख दें। फिर जब चंद्रमा वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक अथवा मकर राशि पर आए, तब मणि को पश्चिम दिशा में रखकर विधिवत् पूजन करें, ऐसा करने से श्रेष्ठ वर्षा होती है।
यदि मणि का पूजन करने के 5 दिन के भीतर ही वर्षा हो तो फसल अच्छी होगी। यदि 10 दिन के भीतर वर्षा हो तो अन्न का भाव सस्ता होगा यह समझना चाहिए। यदि वर्षा आरंभ होने के बाद 5 या 10 दिन तक निरंतर पानी बरसता रहे तो अन्न का भाव बहुत तेज होगा।
यदि 20 दिन तक पानी बरसता रहे तो अकाल पड़ेगा यह समझना चाहिए और यदि 25 दिन तक पानी बरसता रहे तो भारी संकट आएगा। मोहिनी भीष्मकमणि को धारण करने से धन-धान्य, ऐश्वर्य, शारीरिक सुख तथा स्त्री-सुख की वृद्धि होती है। यह मणि प्रसन्नता देने वाली भी है।
कामदेवी भीष्मकमणि को धारण करने से शत्रु पर विजय तथा संपूर्ण कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। यह हृदय रोग तथा अन्य प्रकार के रोगों को दूर करती है। कामदेवी भीष्मकमणि के संगजहरात, संगपनिया, संगवदिनी, संगसैलखड़ी चार उपरत्न बनाए गए हैं। अन्य रत्नों की भाँति इस मणि में भी दोष पाए जाते हैं और उनका प्रभाव भी होता है। अतः सदैव निर्दोष मणि ही धारण करें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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