यह "सर्प मेला" सर्पों के देव स्वरूप होने और उनके द्वारा मनुष्य की भक्ति भावना को समझने का जीता- जागता प्रमाण है। इस अद्भुत "सर्प मेला” को देखने के लिए विदेशों से भी पर्यटक आते रहते हैं।
बिहार के समस्तीपुर जिले के रेलवे जंक्शन से 23 किमी. की दूरी पर गंडक नदी के किनारे "सिंधिया घाट" पर वर्ष नागपंचमी पर दो दिन तक यह अद्भुत मेला लगता है। आसपास के अनेक गांवों से 50 हजार से अधिक स्त्री- पुरुष, बालक, वृद्ध अति उत्साह, श्रद्धा और भक्ति पूर्वक भाग लेते हैं।
सिंधिया घाट के आसपास की महिलाएँ तो नागपंचमी से एक सप्ताह पहले से ही नागों के गीत गाती और नाग देवता की पूजा करती हैं।
नाग पंचमी के एक दिन पहले भगत जी द्वारा गंडक नदी (केगस्वर) से नागपंचमी के दिन सांप निकाले जाते हैं। सिंधिया घाट के आसपास कई ऐसे परिवार हैं जो नाग पंचमी के शुभ अवसर पर परम्परा से नदी से सांप निकालने की कला का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। ये लोग भगत कहे जाते हैं।
भक्तों में मुख्य तीन भगत हैं। ये भगत अलग-अलग स्थानों में नदी में डुबकी लगाते हैं और जब निकलते हैं तो उनके हाथ में सांप होता है. जिसे वे किनारे खड़े जन-समूह की ओर उछाल देते हैं। भीड़ में इन गिरते सांपों के भय के कारण भगदड़ नहीं मचती, बल्कि लोग इन सांपों को प्रसाद रूप से आदरपूर्वक अपने हाथों में पकड़ लेते हैं। इन सांपों में विषधर और विषहीन दोनों प्रकार के सांप होते हैं।
लोगों का कहना है कि इस दिन सांप किसी को काटता नहीं और सच में उस दिन किसी सांप ने किसी को कभी नहीं काटा।
सर्प निकालने के बाद ये भगत सभी लोगों के साथ सांपों सहित घाट से तीन किमी दूर मेला स्थल पर पहुँचते हैं और वहाँ घूम-घूम कर सांपों को लिए हुए तरह-तरह के प्रदर्शन करते हैं।
नाग पंचमी के दिन सर्प दर्शन शुभ माना जाता है। उनका विश्वास है कि इन सांपों को हाथों में लेने से वर्षभर तक साँप काटते नहीं। भगत और श्रद्धालु केवल हाथों में ही सर्प पकड़े नहीं रहते अपितु गले, पेट या कमर में लपेट लेते हैं और साँप हैं कि किसी को काटते ही नहीं।
मुख्य भगत को सर्प मंत्र मालूम होता है। भगत अपने किसी शिष्य को यह देता नहीं। भगत के मरने के बाद उसकी आत्मा किसी शिष्य, किसी मित्र या किसी रिश्तेदार के शरीर में प्रवेश कर जाती है और इसी के साथ वह मंत्र भी उस व्यक्ति के पास चला जाता है। इसी भांति बहुत समय से यही परंपरा चली आ रही है। यहाँ के प्रमुख भगत तो मंत्रों द्वारा हवा से सर्प उत्पन्न कर देते हैं।
कुछ आधुनिक लोगों का कहना है कि भगत लोग पहले से ही सांपों की विष ग्रंथि निकाल देते हैं और चुपचाप साँप निकालने से पूर्व नदी में सांप फेंक देते हैं और भीड़ जुटने पर निकालते हैं।
यह आशंका प्रतीत होती है, क्योंकि निर्विष साँप जब नदी में फेंके जाते हैं तो भीड़ जुटने तक तो वे कहीं भी भाग कर जा सकते हैं। सैकड़ों की संख्या में सर्प वहीं कैसे बने रहते हैं? किंतु वहाँ के लोगों का मानना है कि सर्प सूर्य चंद्रमा की भाँति मानवों के मध्य प्रत्यक्ष देव जाति हैं।
वे इन लोगों की भावनाओं को जानते हैं। अतः वे हमें काटते नहीं। किसी सर्प को कोई कष्ट नहीं दिया जाता उन्हें मट्ठा-छाछ पिलाकर स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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