निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥
चिन्ता चितासमा ह्युक्ता बिन्दुमात्रं विशेषतः।
सजीवं दहते चिन्ता निर्जीवं दहते चिता॥
अर्थात् 'चिन्ता को चिता के समान कहा गया है, केवल एक बिंदु की ही अधिकता है। चिन्ता जीवित पुरुष को जलाती है और चिता मरे हुए पुरुष को जलाती है। '
मनुष्य का जीवन उनके भावनात्मक और मानसिक स्थिति पर आधारित होता है। इस दृष्टिकोण से चिंता एक ऐसी भावना है जो उनके आत्मा को दुखी बना सकती है और उन्हें जीवन के दुःख भरे भारी बोझ के समान प्रतीत होती है। चिंता एक ऐसी अवस्था है जिसमें मनुष्य का मन चिंताओं से भरा होता है, जो उन्हें आनंद और सुख से दूर करके उन्हें आत्मिक और शारीरिक कष्ट में डाल सकती है।
चिंता का संबंध मनुष्य की सोच और चित्त की स्थिति से होता है। जब मनुष्य अनिश्चितता, भय, आशंका, चिंता आदि के विचारों में उलझता है, तब उसका मन चिंता में खो जाता है। इससे मनुष्य का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। चिंता से उनकी नींद खराब हो सकती है, उनका खाने-पीने का स्वाद कम हो सकता है और उनका शारीरिक क्रियाशीलता प्रभावित हो सकती है।
चिंता की वजह से मनुष्य का जीवन अस्तित्व में दुःख और असंतोष से भरा हो सकता है। चिंता से उन्हें स्वयं के और अपने परिवार के लिए खुदरा बनाने की आवश्यकता महसूस होती है, जिससे वे जीवन के आनंद को खो सकते हैं। इससे मनुष्य का रिश्तेदारों, मित्रों और समाज के साथीदारों के साथ तालमेल भी प्रभावित हो सकता है।
चिंता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए, मनुष्य को चिंताओं से निपटने की कला को सीखने की आवश्यकता होती है। ध्यान, मेधा, योग, प्राणायाम, मनन और सक्रियता जैसी तकनीकें मनुष्य को मानसिक शांति, स्वस्थ मनोवृत्ति और सकारात्मकता की ओर ले जाती हैं। इसके अलावा, संगठन, सहयोग, संवेदनशीलता और संघटनशीलता मनुष्य को चिंताओं से दूर रखने में मदद कर सकती हैं।
चिंता एक मनुष्य के जीवन में एक नैतिक विरोधी तत्व है जिसे हमें नियंत्रित करना चाहिए। चिंता के साथ संघर्ष करके, हम अपने जीवन को सकारात्मकता, खुशहाली और समृद्धि की ओर ले जा सकते हैं। हमें चिंता के प्रति जागरूक रहना चाहिए है और उसे नियंत्रित करने के लिए मनोयोग्यता विकसित करनी चाहिए। एक सकारात्मक मानसिकता, स्वस्थ शारीरिकता और साथीदारों के समर्थन के साथ हम चिंताओं से पार पा सकते हैं और खुशहाल और सफल जीवन जी सकते हैं।
चिंताओं को समझें, नियंत्रित करें और उनके प्रति सकारात्मकता विकसित करें। जीवन के प्रतिस्पर्धी और अच्छे पहलू को ध्यान में रखें और चिंता के बारे में जरूरत से अधिक सोचने से बचें। योग, मेधा, मनन और ध्यान की प्रक्रिया अपनाएं जो आपको मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करें। सामाजिक संपर्क में रहें, संगठन शीलता और सहयोग के माध्यम से चिंताओं को कम करें और आपसी समर्थन प्राप्त करें।
चिंताओं से मुक्त होकर आप अपने जीवन को सकारात्मकता, खुशहाली और आनंद से भर सकते हैं। इसलिए, चिंता के संग्रहण से बचें, अपने आप को स्वस्थ रखें और खुश और उत्कृष्ट जीवन की ओर अग्रसर हों।
चिंता से दूर रहें, खुश रहें, और जीवन को पूरी उमंग और संतोष के साथ जीएं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024