Published By:धर्म पुराण डेस्क

भगवान का सामीप्य है उपासना 

उस परम शक्तिशाली सत्ता के पास अगर आप बैठ पाएँ, जो राजाओं का भी राजा है, महाराजाओं का भी महाराजा है, शक्तियों का स्वामी है, शक्तियों का पुंज है, जिसके एक इशारे पर सारी दुनिया तहस-नहस हो सकती है और जिसकी कृपा की एक किरण आने के बाद हम धन्य हो सकते हैं। 

ऐसी महान सत्ता के साथ अपने आप को नजदीक बिठा लेना, पास बिठा लेना- उसका नाम है- उपासना। उपासना का मतलब चावल बिखेर देना नहीं है। कैसे बैठा जा सकता है? कैसे मालदार बना जा सकता है? बेटे, इस तरीके से मालदार बना जा सकता है, जैसे कि भगवान के भक्त बने थे। कौन-कौन बने थे ? एक-दो के नाम बता दीजिए ? हाँ बेटे, बताता हूँ कि उपासना किस-किसने की थी। उस उपासना के ढंग को आपको जानना चाहिए।

हनुमान जी, रामचंद्र जी के पास बैठे और हर समय रामचंद्र जी से एक ही बात मालूम करते रहे कि आप हुक्म दीजिए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? उनका इम्तहान लेने के लिए कड़े से कड़े और असंभव-से-असंभव काम भगवान ने हनुमान जी को सौंपे। 

एक बार हुक्म दिया, तो समुद्र लांघ गए। अरे साहब! हम डूब सकते हैं और हमारी टांग टूट सकती है। कोई हर्ज की बात नहीं है, हम कहते हैं, इसलिए छलांग लगा दीजिए।

एक बार हनुमान जी को हुक्म दिया गया कि जड़ी- बूटी का पहाड़ उखाड़ लाइए। अरे साहब! हम पहाड़ कैसे उखाड़ेंगे ? हमारी उंगली के ऊपर एक पत्थर आ गया, तो उँगली का चूरा कर देगा। हनुमान जी चले गए. और पहाड़ उठाकर ले आए। 

एक बार सीता जी को खोज लाने का हुक्म दिया गया। हनुमान जी लंका गए तो रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी। पूंछ की आग सारे बदन में फैल सकती थी और शरीर में छाले हो सकते थे। अस्पताल में जाते-जाते सेप्टिक हो सकता था और हनुमान जी मर सकते थे। उन्होंने कहा- जो होगा, सो देखा जाएगा। छलांग लगाने वाले को कुछ नहीं हुआ।
 

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