 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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दशहरा पर रावण का दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। देशभर में लोग रावण का दहन कर खुशियां मनाते हैं। इस साल विजयदशमी यानी दशहरा 5 अक्टूबर को है। लेकिन, कई जगह ऐसी भी हैं जहां दशहरा के दिन रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि शोक मनाया जाता है रावण की पूजा अर्चना की जाती है। आज हम आपको ऐसी ही दो स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां रावण दहन पर शोक व्यक्त किया जाता है।
कानपुर के शिवाला स्थित, देश का इकलौता रावण मंदिर है जहां लोग आकर दशानन की पूजा करते हैं। हालांकि, यह मंदिर सालभर में बस विजयदशमी के दिन ही खुलता है। दरअसल, इस मंदिर में रावण को शक्ति के रूप में पूजा जाता है। यहां तेल का दिया जलाकर मन्नत मांगने की मान्यता है। दशहरा के दिन जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो सबसे पहले रावण का श्रृंगार किया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 100 वर्ष पूर्व महाराज प्रसाद शुक्ल ने कराया था।
दरअसल, रावण एक पंडित होने के साथ साथ भगवान शिव का परम भक्त था। इसलिए शक्ति के । प्रहरी के रूप में यहां रावण मंदिर बनाया गया है। ऐसी मान्यताएं है कि रावण भगवान शिव के साथ साथ माता का भी बड़ा भक्त था। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे वरदान दिया था कि उनकी पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की पूजा भी करेंगे। इसलिए दशहरा के दिन छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद ।
रावण की आरती की जाती है और मंदिर में सरसों का तेल और पीले फूल चढ़ाए जाते हैं। बिसरख में नहीं किया जाता रावण दहन वहीं नोएडा से करीब 15 किमी दूर बिसरख गांव है। इस गांव के लोग रावण दहन नहीं करते हैं। बल्कि रावण को अपना बेटा मानते है। ऐसी मान्यताएं है कि रावण का जन्म इसी गांव में हुआ | था। यहां रावण के पिता ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यहां न तो रामलीला होती है और न ही रावण दहन। दशहरा पर यहां रावण | की पूजा की जाती है और शस्त्रों की पूजा की जाएगी।
 
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