Published By:धर्म पुराण डेस्क

दूसरों के प्रति गलत भावनाएं अंततः हमारा ही नुकसान करती हैं

बुरी भावनाएं समाज में संघर्ष तनाव और अवनति का कारण होती है।

भारतीय धर्म दर्शन कहता है कि हमारी भावनाएं हमारे विचारों का परिणाम है हमारे विचार हमारी प्रोग्रामिंग का नतीजा हैं। इसलिए दुर्भावनाओं को जीतना बहुत आवश्यक है बुरी भावनाओं को जीतने के लिए विचारों को जीतना बहुत जरूरी है। विचारों को जीतने के लिए बचपन से लेकर अब तक की गई हमारी प्रोग्रामिंग पर पुनर्विचार आवश्यक है।

दुर्भावनाओं को जीतो- 

बाहरी दुनिया, भीतरी दुनिया का चित्र मात्र है। मनुष्य के मन में जैसी भावनाएं घुमड़ती हैं, बाहरी परिस्थितियां उसी के अनुकूल स्थिर हो जाती हैं। सच्ची शांति की स्थापना करनी हो, तो उस दूषित विचार-धारा को परास्त करना चाहिए. जो युद्धों की जननी है। 

पारिवारिक, सामाजिक, जातिगत, धार्मिक और राजनीतिक युद्धों का मूल कारण दूसरों के हितों की परवाह न करके अपना स्वार्थ-साधन करना है। यह नीति जहां भी काम कर रही होगी, वहीं कलह उत्पन्न होगी। संकीर्ण दायरे में सोचने वाले विचारक अपने देश या जाति के लाभ दूसरे देश या जाति के स्वार्थों की अवहेलना करने लगते हैं, तो उसकी प्रतिक्रिया बड़ी दुःखदायी और अशांतिकारक होती है। 

यह आवश्यक नहीं कि अपने को सुखी बनाने के लिए दूसरों को लूटा-खसोटा ही जाए। इस रीति से यदि कोई संपन्न बन भी जाए तो वह संपन्नता उसके लिए अंततः दुःखदायी ही होती है। समानता, एकता, प्रेम, सहयोग, उदारता और बंधुत्व-भावना के आधार पर सब देशों के मनुष्य आपस में मिलजुल कर रह सकते हैं तथा एक-दूसरे के सुख को बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। 

हम सुखी रहें और सब चाहे जैसे रहें' यह घातक नीति अनेक विघटन उत्पन्न करती है। जब सबके सुख में जो अपना सुख तलाश किया जाता है, वही सुख वास्तविक और टिकाऊ होता है। 

(ऋषि चिंतन के सानिध्य में)

भागीरथ एच पुरोहित



 

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