पुरातात्विक साहित्य, विशेषकर मत्स्य पुराण, में यज्ञ के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन है।
मानव-देवता संबंध:
पहले मनुष्य और देवता साथ-साथ पृथ्वी पर निवास करते थे, लेकिन मनुष्यों के अहंकार ने देवताओं को पृथ्वी छोड़ने पर मजबूर किया।
कल्पवृक्ष और मनुष्य:
कल्पवृक्ष से प्राप्त यह सामग्री के अभाव में मनुष्यों ने पृथ्वी पर उपलब्ध सामग्री से अपने जीवन को संचालित करना शुरू किया।
भौतिक ताप का उत्थान:
सामग्री के अभाव में भौतिक ताप सता, लेकिन मनुष्यों ने ब्रह्माजी की शरण में जाकर यज्ञ की व्यवस्था की।
पंचयज्ञ:
देवयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथि यज्ञ, बलिवैश्वदेव यज्ञ - ये पंच प्रमुख यज्ञ हैं।
यज्ञ की विविधाएँ:
यज्ञ प्रक्रिया में विकास के साथ, हवन की विधियों के साथ, आयुर्वेद का भी समावेश हुआ।
आहुतियों का महत्व:
आहुतियों के माध्यम से देवताओं को समर्पित करना, यज्ञ का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
ग्रहों के आहुति-संबंध:
वेद मंत्रों में ग्रहों का उल्लेख नहीं, लेकिन नक्षत्रों के मंत्र और उनके निमित्त आहुतियों की महत्ता है।
हवन में आयुर्वेद का योगदान:
हवन सामग्री द्वारा आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करता है, जिससे रोगों का शमन होता है।
यज्ञ की समाप्ति:
देवताओं के निमित्त भोग, हवन कुण्ड की राख को शरीर पर तिलक, आरती, देवताओं को विदा करना और क्षमा माँगना यज्ञ के समाप्ति के अंग हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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