नियमित योग द्वारा शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखा जा सकता है। यदि किसी का पेट गड़बड़ है, लिवर खराब है, लंग्ज में खराबी है, तो वह विचार ठीक से नहीं कर सकता, चिड़चिड़ा हो जाता है।
यदि थायराइड ग्लैंड काम करना बंद कर दे, तो बौद्धिक क्षमता शिथिल हो जाती है, शारीरिक व मानसिक कार्य में इसका बड़ा महत्व है। इसलिए योगासन व मुद्राएं शरीर की ग्रंथियों को ठीक रूप से कार्य करने में मदद करती हैं।
1. आसन व योग क्रिया का प्रभाव-मानव शरीर की रस-भावी ग्रंथियों, आंतरिक अवयवों तथा ज्ञान तंतुओं की हल्की मालिश करना ही योगासन है।
2. योग मुद्रा, बंध और क्रियाएं शरीर की ऐंद्रिक तथा ग्रंथियों की क्रियाओं को उत्तेजित कर योगी के हृदय, फेफड़े तथा अन्य अनैच्छिक अवयवों को नियमित, नियंत्रित करने में सहायता पहुंचाती हैं।
प्राणायाम- यह क्रिया फेफड़े व रक्त तंतुओं को स्वच्छ करती है।
गलत विचार और गलत भावनाओं का संपूर्ण शरीर तथा ज्ञान तंतुओं पर बहुत दुष्प्रभाव होता है। श्वसन-क्रिया तथा हृदय' पर भय, क्रोध तथा कामोत्तेजना का असर होता है। चिंता, विकार तथा डर से मानसिक बीमारियां होती हैं,
इसलिए आसन, प्राणायाम तथा ध्यान के द्वारा मन का संतुलन तथा शांति प्राप्त करके इन बीमारियों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
योग, आसन, प्राणायाम करने के पहले कुछ सावधानियां ध्यान में रखें ..
1. गहरी व पूरी सांस भरकर लें।
2. जितने समय में सांस ली, उसके दुगुने समय में उसे धीरे-धीरे छोड़ें।
3. झुक कर न बैठें, हमेशा बैठते, चलते समय रीढ़ की हड्डी सीधी, गर्दन भी सीधी रखें।
4. आसन के समय पेट खाली रखें।
5. भोजन के बाद कोई क्रिया न करें।
6. भोजन के बाद केवल वज्रासन करें अर्थात घुटने पीछे मोड़कर सीधे बैठें। इससे सुस्ती भागेगी, दिमाग ठीक से कार्य करेगा, खाना ठीक से हजम होगा, गैस बनना कम हो जाएगी।
7. आसन, प्राणायाम के समय मल-मूत्र की हाजत न रहे।
8. सामने झुकने वाले आसनों में सांस नाक से ही छोड़ें। पीछे झुकने वाले आसनों में गहरी सांस लें। ऐसे ही दाएं-बाएं झुकने वाले आसनों में सांस छोड़ें व सीधे होते समय की स्थिति में गहरी सांस लें।
9. आसन करते समय ध्यान रखें कि रीढ़ की हड्डी आगे-पीछे, दाएं-बाएं झुकाने वाले आसन अवश्य करें। केवल एक तरफ झुकने वाले आसन करके ही नहीं छोड़ें।
10. हमेशा नाक से सांस लें, मुंह से नहीं।
11. सूर्योदय के समय शौच आदि से निपटकर ही आसन करें, शाम को भी कर सकते हैं।
12. आसनों को एक ही बार में जबरदस्ती ठीक करने का प्रयास न करें, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है।
13. आसन फर्श पर नहीं करें, चादर, कंबल बिछाकर ही करें।
आसन- सबसे पहले पवनमुक्तासन में खड़े रहकर या बैठकर, कुछ लेटकर करने वाले आसन अवश्य करें, यह शरीर के विभिन्न जोड़ों को घुमाकर करने से जोड़ों को मुलायम करते हैं। जैसे हाथ पैरों की कलाई, एड़ी, पंजे, घुटने, कोहनी, कंधा आदि को आगे पीछे गोल घुमाकर किए जाते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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