हृदय रोग (Heart disease)-
हृदय एवं रक्त परिसंचरण तंत्र शरीर की सबसे जटिल संरचना है। इसमें होने वाले असंतुलन उसी क्रम में जटिल व जीवन के लिए घातक है।
हृदय शूल (angina pectoris), धमनी काठिन्य (atherosclerosis), हृद्पात (cardiac failure) एवं उच्च रक्तचाप (hypertension) आदि मुख्य हृदय संबंधी समस्याएं हैं। यूं तो ये सभी समस्याएं अलग-अलग जानी जाती हैं, फिर भी ये आपस में काफी मिलती-जुलती हैं।
रक्त में बढ़े हुए चर्बी एवं शर्करा की मात्रा रक्त के माध्यम से रक्त नलिकाओं में पहुँच कर उसे सख्त और संकरी बना देती है और रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने लगता है, ऐसी स्थिति में हृदय थकता एवं कई सारी समस्याओं को पैदा करता है। शुरुआत में तो उच्च रक्तचाप एवं हृदय शूल जैसे सामान्य लक्षण ही दिखाई पड़ते हैं, बाद में धमनी काठिन्य एवं हृद्पात तक की स्थिति आ सकती है।
योग चिकित्सा सिद्धांत:
हृदय की समस्या से ग्रसित लोगों के लिए बहुत ही सावधानी की आवश्यकता होती हैं; क्योंकि किसी भी तरह की लापरवाही घातक हो सकती है। रक्त संचार की प्रक्रिया बेहतर हो, रक्त से कोलेस्ट्रॉल एवं शुगर की मात्रा घटे एवं हृदय का कार्यभार घटे यही यौगिक चिकित्सा का उद्देश्य होता है। इसलिए आसन से ज्यादा प्राणायाम एवं ध्यान को प्रधानता दी जानी चाहिए।
अभ्यास:
आसन: संधि संचालन (श्वास-प्रश्वास के तालमेल के साथ), ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटि चक्र आसन (5-5 चक्र), शवासन 15 मिनट। शशकासन, वज्रासन, मकरासन, सर्पासन।
प्राणायाम: नाड़ी शोधन (बिना कुम्भक के), सूर्य भेदन, शीतली, सीत्कारी, भ्रामरी, उज्जायी क्रियाएँ : जलनेति, कपालभाति (25 से 50 चक्र नियमित)
विशेष: योग निद्रा, सोऽहं साधना, गायत्री मंत्र जप।
सावधानियां: कोई भी उच्च अभ्यास बिना कुशल मार्गदर्शक के न करें। बीच में जब भी परेशानी महसूस हो शवासन में लेट कर सोऽहं का ध्यान करें। किसी भी उच्च अभ्यास के लिए उत्सुकतावश प्रयास न करें।
अन्य सलाह: सुबह शाम टहलने का क्रम बनाएं, तनाव मुक्त रहने का प्रयास करें। अधिक चिकनाई युक्त भोजन न लें, किसी भी तरह के व्यंजन का परित्याग करें, जीवन के प्रति सकारात्मक रुख अपनाएं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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