Published By:धर्म पुराण डेस्क

वृद्धों के लिए योगाभ्यास

आधुनिक जीवन शैली, यान्त्रिकता एवं उपयोगितावादी मानसिकता ने हमारे यहाँ आदरणीय माने जाने वाले समाज के बुर्जुगों की उपेक्षा सी कर दी है। उनकी उपलब्धियों को भुला दिया है एवं उन्हें बेकार समझा जाने लगा। 

शारीरिक रूप से वे इतने दुर्बल नहीं हैं, जितने मानसिक रूप से हो जाते हैं। उनके सम्मान को ठेस पहुँचती है और उन्हें भी अपनी जिन्दगी बोझ लगने लगती हैं, जबकि वे अपने अनुभव का लाभ परिवार, समाज को दे सकते हैं। ऐसे में योग उनके सोचने, समझने और समभावी संतोषी बनाने में मदद करता है, साथ ही कमजोर हो रहे स्नायु एवं जोड़ों को सफल बनाने में मदद मिलती है। 

अभ्यास :

आसन : संधि संचालन के अभ्यास पूरी तन्मयता से प्राणिक प्रवाह को महसूस करते हुए, प्रज्ञायोग व्यायाम (यदि संभव हो तो 1 से 4 चक्र). शवासन 15 मिनट मार्जारी आसन, वक्रासन, वज्रासन, शशकासन।

प्राणायाम : नाडीशोधन, भ्रामरी, उज्जायी।

क्रियाएँ : जलनेति, कपालभाति (25 से 50 चक्र नियमित), वमन (सप्ताह में एक बार)।

विशेष : योगनिद्रा, गायत्री मंत्र जप, भजन-कीर्तन

अन्य सुझाव- नियमित रूप से प्रातः व सायं भ्रमण का अभ्यास बनाएं। समभाव विकसित करने के लिए स्वाध्याय-सत्संग करें। अकेलापन हटाने के लिए किसी छोटे-मोटे कार्य में लगे रहें। रात्रि सोने से पहले भ्रामरी प्राणायाम व गायत्री मंत्र जप का क्रम बनाएं।


 

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