आधुनिक जीवन शैली, यान्त्रिकता एवं उपयोगितावादी मानसिकता ने हमारे यहाँ आदरणीय माने जाने वाले समाज के बुर्जुगों की उपेक्षा सी कर दी है। उनकी उपलब्धियों को भुला दिया है एवं उन्हें बेकार समझा जाने लगा।
शारीरिक रूप से वे इतने दुर्बल नहीं हैं, जितने मानसिक रूप से हो जाते हैं। उनके सम्मान को ठेस पहुँचती है और उन्हें भी अपनी जिन्दगी बोझ लगने लगती हैं, जबकि वे अपने अनुभव का लाभ परिवार, समाज को दे सकते हैं। ऐसे में योग उनके सोचने, समझने और समभावी संतोषी बनाने में मदद करता है, साथ ही कमजोर हो रहे स्नायु एवं जोड़ों को सफल बनाने में मदद मिलती है।
अभ्यास :
आसन : संधि संचालन के अभ्यास पूरी तन्मयता से प्राणिक प्रवाह को महसूस करते हुए, प्रज्ञायोग व्यायाम (यदि संभव हो तो 1 से 4 चक्र). शवासन 15 मिनट मार्जारी आसन, वक्रासन, वज्रासन, शशकासन।
प्राणायाम : नाडीशोधन, भ्रामरी, उज्जायी।
क्रियाएँ : जलनेति, कपालभाति (25 से 50 चक्र नियमित), वमन (सप्ताह में एक बार)।
विशेष : योगनिद्रा, गायत्री मंत्र जप, भजन-कीर्तन
अन्य सुझाव- नियमित रूप से प्रातः व सायं भ्रमण का अभ्यास बनाएं। समभाव विकसित करने के लिए स्वाध्याय-सत्संग करें। अकेलापन हटाने के लिए किसी छोटे-मोटे कार्य में लगे रहें। रात्रि सोने से पहले भ्रामरी प्राणायाम व गायत्री मंत्र जप का क्रम बनाएं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024