जिनका शरीर व्याधियों से पीड़ित नहीं है, वही स्वस्थ नहीं है। स्वास्थ्य की परिभाषा ये कहती है कि शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न, इन्द्रियाँ नियंत्रित एवं सभी दोष, धातुएँ, मल, व अग्नि सम भाव में हों।
आधुनिक युग में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य को ही पूर्ण स्वास्थ्य मानता है। इस तरह देखा जाये तो कोई भी पूर्ण स्वस्थ नहीं है; परन्तु इस ओर प्रयास किया जा सकता है।
योग - अभ्यास की कुछ चुनी हुई प्रक्रिया यदि नियमित रूप से अपनाई जाये तो इस ओर सफलता पाई जा सकती है। जिनका शरीर स्वस्थ है उन्हें मानसिक, भावनात्मक संतुलन एवं आध्यात्मिक उत्थान हेतु प्रयास करने चाहिए।
अभ्यास :
आसन : संधि संचालन के अभ्यास, (श्वास-प्रश्वास के तालमेल के साथ) ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटि चक्र आसन (5-5 चक्र), सूर्य नमस्कार (5 चक्र), शवासन 15 मिनट हलासन, पश्चिमोत्तानासन, धनुरासन, पद्मासन, सिद्धासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, (क्षमतानुसार) शवासन पुनः 5 मिनट।
प्राणायाम : नाड़ीशोधन, शीतली, भ्रामरी, भस्त्रिका।
क्रियाएँ : जलनेति (सप्ताह में 1 बार), कपालभाति (25 से 50 चक्र नियमित), वमन (सप्ताह में 1 बार), लघुशंख प्रक्षालन (महीने में 1 बार)।
विशेष : योगनिद्रा, सोऽहम साधना, गायत्री मंत्र जप।
अन्य सलाह : स्वस्थ रहने के लिए नियमित दिनचर्या, उचित खान-पान और योगाभ्यास की नियमितता बनाए रखें। सुबह-शाम टहलने का क्रम बनाएं, तनाव मुक्त रहने का प्रयास करें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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