 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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एक स्वस्थ नारी ही स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ परिवार एवं सभ्य समाज के निर्माण की भूमिका अदा कर सकती है। घर के अंदर और बाहर दोनों तरफ की जिम्मेदारी निभाने में अपने स्वास्थ्य की चिंता तो ये कम ही करती हैं।
आज के समाज में महिलाओं ने अपने स्वास्थ्य के प्रति थोड़ी सजगता दिखलाई हैं। तेजी से हेल्थ क्लब एवं फिजियो केन्द्रों की संख्या में वृद्धि हुई है। थोड़ी सी आहार-विहार की नियमितता एवं योगाभ्यास ही जीवन में समावेश स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मानसिकता देने में सक्षम है।
जागरूक महिलाओं को परिवार एवं समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस ओर प्रयास करना ही चाहिए।
अभ्यास-
आसन : संधि संचालन श्वास-प्रश्वास के तालमेल के साथ, प्रज्ञा योग व्यायाम ( 3 से 4 चक्र), शवासन 15 मिनट। उदर संचालन एवं शक्ति संवर्धन के अभ्यास, विपरीतकर्णी आसन, शवासन पुनः 5 मिनट।
प्राणायाम : नाड़ी शोधन, उज्जायी, भ्रामरी।
क्रियाएँ : जलनेति (सप्ताह में एक बार), कपालभाति (25 से 50 चक्र नियमित), वमन (सप्ताह में एक बार), लघु शंख प्रक्षालन (महीने में एक बार)।
विशेष : योग निद्रा, गायत्री मंत्र जप।
अन्य सलाह : सुबह सूर्योदय से पहले शय्या त्यागें। पेट को स्वस्थ रखने के लिए उषापान एवं प्रातः भ्रमण का क्रम बनाएं। दिन भर कुछ-कुछ की आदत त्यागें, मसालों एवं बासी भोजन की उपेक्षा करें। मन को खाने कुविचारों से बचाए रखने लिए स्वाध्याय या सत्संग-भजन आदि करें।
 
 
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