वेदों और पुराणों में आध्यात्मिक सच्चाई को समझाने के लिए 'चक्र' शब्द का प्रयोग किया गया है। यह चक्र आध्यात्मिक जीवन में ऊर्जा की बहुमुखी प्रवाहना को संकेतित करता है और हमें अपने आंतरिक स्वरूप की उद्दिपन्नता में मदद करता है।
मूलाधार चक्र: यह चक्र स्पष्टीकरण से ही दिखाई नहीं देता, क्योंकि यह सूक्ष्म शरीर में स्थित होता है। यह चक्र गुदा के निकट, मूलाधार द्वारा स्थित होता है और जीवन की मूल ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
स्वाधिष्ठान चक्र: यह चक्र नाभि से नीचे के भाग में स्थित होता है और यह आत्म-संवेदना और भावनाओं की ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
मणिपुर चक्र: इस चक्र का स्थान नाभि केंद्र पर होता है और यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति की ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
अनाहत चक्र: यह चक्र हृदय क्षेत्र में स्थित होता है और प्रेम, सहानुभूति, और सामाजिक आनंद की ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
विशुद्ध चक्र: यह चक्र कंठकूप के बीच में होता है और यह सत्य, संवेदनाओं की ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
आज्ञा चक्र: इस चक्र का स्थान भौंहों के बीच में होता है और यह इंद्रियों के नियंत्रण और आत्म-अनुभव की ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
सहस्रार चक्र: इस चक्र का स्थान सिर के शीर्ष पर होता है और यह आध्यात्मिक ऊर्जा की ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है।
ये चक्र आध्यात्मिक साधना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जहाँ हम अपने आंतरिक स्वरूप की खोज में निरंतर प्रयास करते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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