 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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काम, क्रोध और लोभ। यही असफलता के तीन द्वार हैं। सफलता पाने के लिए जीवन में धैर्य बहुत जरूरी है। धैर्य और साहस से सब कुछ सम्भव है। असफलता ही सफलता की ओर ले जाती है।
हमें पशु पक्षियों से बहुत ज्ञान मिलता है। एक बार साँप और मोर आमने-सामने आ डटे। मोर ने अपना शरीर फुला लिया। भन्न भन्न की आवाज़ गूँज उठी। जैसे कोई लाठी पटक रहा हो। नाग का क्रोध भड़क उठा, मोर चुपचाप धैर्य पूर्वक खड़ा रहा। साँप ने फुफकारते हुए अनेक वार किए। मोर थोड़ा पीछे हटा।
पहले और दूसरे वार के बीच में जो समय था, उसी में मोर ने अपनी नुकीली चोंच और पंजे से उसका मुंह दबोच लिया। साँप अत्यंत क्रोधित हो उठा। मोर ने वारों से उसे पस्त कर दिया। वह वार के लिये हिम्मत न जुटा पाता और मोर उसे नोंचता जा रहा था। अन्त में सांप अत्यंत पस्त हो गया।
मोर ने झपट कर एक पंजे से उसकी दुम पकड़ी, दूसरे पंजे से मुँह। अपने चंगुल में उसके मुँह और दुम को दबोचे हुए मोर ने सांप की देह के कई टुकड़े कर दिये। कुछ खाया कुछ छोड़कर मोर उड़ गया।
सर्प और मोर की लड़ाई में विशेषता यह रही कि सर्प ने धीरज खो दिया और मोर ने अपना धैर्य बनाये रखा। अतः धैर्य की जीत हुई और शायद मोर इसलिए हमेशा जीत जाता है। कभी भी बड़े-बड़े विषधरों के डसने से भी मोर की मृत्यु नहीं हुई, यह धैर्य का परिणाम है और धैर्य विवेक से ही सफलता मिला करती है।
किसी भी मन भावन एक काम के पीछे पड़ जायें, तो सफलता मिलेगी अवश्य और स्मरण रखो कि एकहि साधे सब सधे सब साधे सब जायँ।
 
 
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