भगवान शिव का विराट रूप गीता में श्री कृष्ण ने ग्यारह रुद्रों के मुखिया भगवान शिव को अपना प्रतीक माना है-"रुद्राणां शंकरश्चास्मि " व्यापक लोक श्रद्धा में वे देवाधिदेव महादेव हैं इसलिए यजुर्वेद में इस प्रकार प्रणाम किया है|
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय ॥
भगवान शम्भु अपने जीवन दर्शन, रहन-सहन और पारिवारिक रूप से पूरी तरह भारत की नागरिकता के प्रतीक हैं। सर्प, मोर, चूहा, बैल, सिंह, गंगा, भूत-बेताल और श्मशान के साथ मंगल दायक श्री गणेश, सौभाग्य और शक्ति की प्रतीक माँ गौरी (जगदम्बा), असुरों के विजेता स्वामी कार्तिकेय भारतीय जीवन का ही एक सम्पूर्ण समन्वय है।
"ये जो धूप और छाया, शिव जी की माया" भगवान आशुतोष के जहाँ एक ओर नन्दी हैं, वहीं दूसरी ओर कंठ में भयंकर विषधर भी हैं। नन्दी जहाँ शिव के प्रिय वाहन हैं, वहाँ सर्प उनके गले का हार हैं। ये दोनों ही शिव को परमप्रिय हैं।
शिव के एक हाथ में डमरू है। इसीलिए शिव भक्त बहुत ही श्रद्धा भाव से गाते हैं कि, डम-डम डमरू वाला-बड़ा मतवाला है। पिएँ भाँग का प्याला शिव तो भोला भाला है एक हाथ मे संसार की तीन शूलों (कष्टों) का प्रतीक त्रिशूल है। भूत, भविष्य, वर्तमान एवं विश्व रूप शिव में ही दिखाई दिया करते हैं।
शिव आदि देव हैं। भूमि, जल, अग्नि, पवन, आकाश, अहंकार, महत्तत्त्व यह सात आवरण सहित शिव सर्वत्र विद्यमान हैं। सर्वव्यापी शिव के चरण मूल में पाताल और एड़ी में बरसात, जांघ में महातल है, तो नाभि में नभस्थल और हृदय में स्वर्ग लोक है।
महर्लोक ग्रीवा में, जनलोक वदन (मुख) में और तप लोक शिव के ललाट में है। कानों में सारी दिशायें और शब्द, घ्राणेन्द्रिय (नाक) में गंध और मुख में प्रकाशमान अग्नि का निवास है।
नेत्र गोलक अंतरिक्ष हैं, तो सूर्य चंद्र दोनों उनकी आँखें व दिन-रात प्रभु दया सागर के दोनों पलक हैं, ब्रह्मपद भौहों का चलना है, तालु में संसार का जल समाया है तो जीभ रस है, सिर अनन्त वेद हैं, विश्व की रचना शिव का कटाक्ष है। ऊपर का ओठ लज्जा, निचला ओठ लाभ है।
छाती धर्म है तो पीठ अधर्म का मार्ग। अण्डकोष मित्रा-वरुण नामक देव और सातों समुद्र उस विराट पुरुष की कोख हैं। उनके हाड़ (हड्डियाँ) सारे पर्वत हैं। इस प्रकार यह सारा विश्व भगवान शिव का विराट स्वरूप है।
भगवान शिव के इस विराट स्वरूप को जो भी हृदयंगम कर लेंगे उनके लिए ही विश्व में अपना पराया, तेरा-मेरा, ऊँच-नीच आदि का भेद समाप्त हो जायेगा।
अतः भक्तों द्वारा कहा जाता है कि शिव में व्यापक दुनिया सारी। शिव माया की है बलिहारी॥ शिव की रचना सात समन्दर। शिव ही बाहर शिव ही अन्दर॥
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024