Published By:धर्म पुराण डेस्क

सच्चिदानंद की शरण में जाने से ही मिलेगा सच्चा सुख

अनंतकाल से असंख्य योनियों में भटकता हुआ, अपार कष्टों और दुखों को सहन करता हुआ जीव असीम करुणा-वरुणालय भगवान की अहैतु की कृपा से इस देवदुर्लभ मानवयोनि को प्राप्त करता है। 

मनुष्य का शरीर पाकर भगवत्कृपा से यदि संत और सत्संग का सुयोग भी मिल जाए तो सोने में सुगंध के समान उसका यह जीवन धन्य बन जाता है। किंतु इस प्रकार की परिस्थिति जन्म-जन्मान्तर के संचित पुण्य-फल से ही प्राप्त होती है। जिन्हें ऐसा सुयोग मिलता है, वे वन्दनीय हैं।

स्वामी शुकदेवानंद जी सरस्वती महाराज कहते हैं सभी प्राणी सुख की खोज में ही अनंतकाल से भटक रहे हैं। संसार के सभी कार्य सुख और शांति का अनुभव करने के लिये किये जाते हैं, किंतु अहर्निश अपने-अपने कार्यों में संलग्न मानव को स्थायी सुख का अनुभव नहीं हो पाता। 

इससे विदित होता है कि हम जिस वस्तु व्यक्ति अथवा परिस्थिति से सुख के अभिलाषी हैं, वहाँ सच्चे अर्थों में सुख है ही नहीं, केवल सुखाभास है, मृग मरीचिका है। नाशवान वस्तु और व्यक्ति तथा परिवर्तनशील परिस्थिति में शाश्वत सुख की अनुभूति कैसे हो सकती है? वह तो असम्भव ही है। 

इसलिए लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने इस संसार को दुखालय बताया है - दुखालय- मशाश्वतम्। जिस प्रकार औषधालय में औषधियां मिल सकती हैं, पुस्तकालय से पुस्तकें प्राप्त हो सकती हैं. भोजनालय से भोजन मिल सकता है, ठीक इसी प्रकार संसार रूपी दुखालय से दुःखों के अतिरिक्त और मिल भी क्या सकता है? इस दुखालय में सुख और शान्ति को खोज तो आकाश कुसुमवत् है, मृगमरीचिका मात्र ही है।

प्रत्येक मनुष्य यही चाहता है कि मैं सदा बना रहूँ, कभी मेरा अन्त न हो। मूढ़ और अज्ञानी कोई नहीं बनना चाहता। कोई यह भी नहीं चाहता कि आज जो सुख मुझे प्राप्त है, वह कल मेरे पास न रहे अर्थात प्रकारान्तर से वह सत्-सदा रहने वाला, चित्-सब कुछ जानने वाला, आनन्द- कभी न मिटने वाला शाश्वत सुख ही चाहता है। 

इस प्रकार की स्थिति प्राप्त करने के लिये हमारे अनुभवी संत-महापुरुषों और सत्-शास्त्रों ने सच्चिदानंद की शरण में जाने का उपदेश किया है। 

भक्तों की भावना वे सच्चिदानन्द निखिल ब्रह्माण्ड नायक राम, कृष्ण, शिव, शक्ति, गणेश आदि असंख्य रूपों में अवतरित हुए और अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार भक्तों ने उनकी उपासना करके अपने चरम लक्ष्य परमपद अथवा शाश्वत शान्ति को प्राप्त किया है। 

एक ही गंतव्य की ओर जाने वाले विभिन्न मार्गों की भाँति अधिकारी भेद से उपासना के भी अनेक मार्ग है। उन परम दयामय प्रभु को अपनी भावना के अनुसार भक्तजन प्राप्त करते आए हैं।
 

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